चित्तं वाक्य
उच्चारण: [ chitetn ]
उदाहरण वाक्य
- किंचिन् मुंचति गृण्हाति किंचिद् हृष्यति कुप्यति ॥ १ ॥ श्री अष्टावक्र कहते हैं-तब बंधन है जब मन इच्छा करता है, शोक करता है, कुछ त्याग करता है, कुछ ग्रहण करता है, कभी प्रसन्न होता है या कभी क्रोधित होता है ॥ १ ॥ तदा मुक्तिर्यदा चित्तं न वांछति न शोचति।
- प्रियं पुत्रादि यत्प्रीत्या तस्मै श्री गुरवे नमः॥ ३ ७ ॥ जिनके सत्य पर अवस्थित होकर यह जगत् सत्य प्रतिभासित होता है, जो सूर्य की भाँति सभी को प्रकाशित करते हैं, जिनके प्रेम के कारण ही पुत्र आदि सभी सम्बन्ध प्रीतिकर लगते हैं, उन सद्गुरु को नमन है॥ ३ ७ ॥ येन चेतयते हीदं चित्तं चेतयते न यम्।
- मोहमूल बहु सूल प्रद त्यागहु तम अभिमान भजहु राम रघुनायक कृपा सिंधु भगवान शस्त्र और शास्त्र दोनों के धनी श्री गुरू गोविन्द सिंह जी भी सुस्पष्ट शब्दों में कहते हैं:-सबै मंत्रहीनं सबै अंत कालं भजो एक चित्तं सुकालं कृपालं 'जब अंत समय आता है तो सभी मंत्र निष्फल हो जाते हैं, इसीलिए मन लगाकर कृपा सिंधु प्रभु का भजन करो.'
- नाहं चित्तं शोक मोहौ कुतो मे, नाहं कर्ता बंध मोक्षौ कुतो मे॥ मैं उत्पन्न नहीं हुआ हूँ, फिर मेरा जन्म-मृत्यु कैसे? मैं प्राण नहीं हूँ, फिर भूख-प्यास मुझे कैसी? मैं चित्त नहीं हूँ, फिर मुझे शोक-मोह कैसे? मैं कर्ता नहीं हूँ, फिर मेरा बन्ध-मोक्ष कैसे? जब वह समझ जाता है कि मैं क्या हूँ तब उसे वास्तविक ज्ञान हो जाता है और सब पदार्थों का रूप ठीक से देखकर उसका उचित उपयोग कर सकता है ।