जीव आत्मा वाक्य
उच्चारण: [ jiv aatemaa ]
उदाहरण वाक्य
- जीव उपाधि युक्त ब्रह्म है अर्थात देह, मन, बुद्धि, अज्ञान आदि के कारण सीमित शक्ति वाला है, यह जीव आत्मा का अज्ञानमय स्वरूप है.
- स्वाध्याय के द्वारा हमने जाना कि हम शरीर नहीं हैं, जीव हैं और जीव आत्मा का ही गुण दोष से युक्त एक परिवर्तित रूप है।
- जब शरीर में स्थित जीव भगवत कृपा से आत्मा का साक्षात्कार करता है और शान्ति-आनन्द की अनुभूति पाता है तब यह जीव आत्मा विभोर हो उठता है।
- जीव आत्मा अपने ही माया जाल में फंसकर रह जाता है और इस कारण अपने द्वारा रचित स्वप्नावस्था के अन्धेरे में सुख दुख का अनुभव करता है.
- जीव उपाधि युक्त ब्रह्म है अर्थात देह, मन, बुद्धि, अज्ञान आदि के कारण सीमित शक्ति वाला है, यह जीव आत्मा का अज्ञानमय स्वरूप है.
- इसी प्रकार मुनि राजपद्मविमल ने सबसे के प्रति प्रेम-भाव अपनाते हुए जीवन मे विन्रम और जीव आत्मा के प्रति दया भाव रखने व किसी की भी आत्मा को पीड़ा नहीं पहुंचाने को कहा।
- बाकी चार गुण प्राप्त करते ही जीव आत्मा वापिस निरंकार में समां जाती है, लेकिन उसको प्राप्त करने के लिए जीव आत्मा को खुद को गुरमत के ज्ञान द्वारा समझना ज़रूरी है।
- बाकी चार गुण प्राप्त करते ही जीव आत्मा वापिस निरंकार में समां जाती है, लेकिन उसको प्राप्त करने के लिए जीव आत्मा को खुद को गुरमत के ज्ञान द्वारा समझना ज़रूरी है।
- योग के शब्दों में यह कहा जा सकता है कि योग के द्वारा जीव आत्मा का ऐसा संतुलन बनता है जिससे कोई भी व्यक्ति जीवन की सभी स्थितियों को समान भाव से देख सके।
- असली रहस्य का अर्थ-मैंने ऊपर कहा कि कालपुरुष कभी नहीं चाहता कि कोई जीव आत्मा मुक्त होकर असली सुखधाम याने अपने वास्तविक घर सतलोक (जहाँ की वह निवासी है) जा सके ।