ढोला मारू वाक्य
उच्चारण: [ dholaa maaru ]
उदाहरण वाक्य
- इस प्रकार केवल पात्रबदलने पर ही अलग अलग रंग बनाने की पद्धति प्राचीन काल से मेवाड़ मेंप्रचलित रही है जिसका यहां के प्राचीन चित्र सम्पुटों में विधिवत प्रयोग, राष्ट्रीय संग्राहालय में सुरक्षित ढोला मारू १५९२ ई.
- इसके बावज़ूद कई आचार्य व कवियों ने इस भाषा में उच्च-कोटि का साहित्य-सृजन किया. इस भाषा की प्रमुख कृतियों में पउम-चरिउ (पद्म-चरित), ढोला मारू रा दूहा, पृथ्वीराज रासो, बीसलदेव रासो आदि का नाम आता है.
- जहां कि रेतीली भूमि आज भी वहा के राजपूतो की शोर्यगाथा सुनती है जहा आज भी ढोला मारू के प्यार की कहानियां गूंजती है सावन में मोर नाचते है पपीहे गाते है उनकी पीहू पीहू दिल में हुक सी जगाती है ….
- छत्तीसगढ के लोकगीतों में अन्य आदिवासी क्षेत्रों की तरह सर्वप्रमुख गाथा-महाकाव्य का अहम स्थान है जिसमें लोरिक चंदा, ढोला मारू, गोपीचंद, सरवन, भरथरी, आल्हा उदल, गुजरी गहिरिन, फुलबासन, बीरसिंग के कहिनी, कंवला रानी, अहिमन रानी, जय गंगा, पंडवानी आदि प्रमुख हैं ।
- रंगीलो राजस्थान……..जहां कि रेतीली भूमि आज भी वहा के राजपूतो की शोर्यगाथा सुनती है जहा आज भी ढोला मारू के प्यार की कहानियां गूंजती है सावन में मोर नाचते है पपीहे गाते है उनकी पीहू पीहू दिल में हुक सी जगाती है….जहां औरते आज रंग बिरंगे लहंगा चुनरी में सजी वहा की मारवाड की संस्क्रती [...]
- ढोला मारू ” की नायिका मारुवणी इसी पूंगल की राजकुमारी थी | आज भी राजस्थान के गांवों में किसी सुंदर महिला को पद्मिनी की उपमा देते हुए कह दिया जाता है-ये तो पूंगल की पद्मिनी है, या अति सुन्दर पत्नी की कामना रखने वाले किसी लड़के से मजाक में कह दिया जाता है-इसको तो पूंगल की पद्मिनी चाहिये |
- स्थानीय कलाकारों ने आज रंगमंच पर भिलाई की उषा बारले ने पंडवाणी, भिलाई के अष्विनी वर्मा का भजन, रायपुर के मनोज सेन का लोकमंच, नागपुर के जयप्रकाष षर्मा का भजन तथा रायपुर के दिलीप ताम्रकार की नृत्य नाटिका, लिटिया सेमरिया के अजय उमरे का नाचा तथा छत्तीसगढ के मषहूर ढोला मारू भिलाई की रजनी रजक ने मनमोहक प्रस्तुतियां देकर दर्शकों का खासा मनोरंजन किया.
- यह जैसलमेर के रावल मालदेव की पोत्री और रावल हरराज की राजकुमारी थी | रावल हरराज जैसलमेर के शासकों में बड़े साहित्य और कला प्रेमी शासक थे | उनके शासनकाल में राजस्थानी छंद शास्त्र के प्रसिद्ध ग्रंथ पिंगल सिरोमणि और श्रृंगार रस के काव्य ढोला मारू री चौपाई का सर्जन जैन मुनि कुशललाभ जी ने किया था | कुशलराज उनके काव्य गुरु थे |
- राजस्थान की आंचलिक ढूंढाड़ी भाषा के कवि दुरगादान गौड़ ने बड़े ही अनूठे अंदाज में गीत सुनाए-मीठा गीत जवानी मीठी, मीठा ढोला मारू हाय म्हारी चांद कुंवर तने हिवड़ा बीच उतारूं मीठा सपना मीठी यादां मीठी बात वचन अरु वादा जग सूं थाणी हांसी पी ग्या म्हां भी हो गया मीठा ज्यादा म्हारी भी तकदीर संवर जा आ जा थारी केश संवारूं।
- रंगीलो राजस्थान……..जहां कि रेतीली भूमि आज भी वहा के राजपूतो की शोर्यगाथा सुनती है जहा आज भी ढोला मारू के प्यार की कहानियां गूंजती है सावन में मोर नाचते है पपीहे गाते है उनकी पीहू पीहू दिल में हुक सी जगाती है….जहां औरते आज रंग बिरंगे लहंगा चुनरी में सजी वहा की मारवाड की संस्क्रती को दर्शाती है और उतने ही प्यार से मेहमानों का स्वागत करती है आइये आप को राजस्थानी रसोई में ले कर चलते है……………..