तैत्तिरीय ब्राह्मण वाक्य
उच्चारण: [ taitetiriy beraahemn ]
उदाहरण वाक्य
- तैत्तिरीय ब्राह्मण में लिखा है कि “मुखं वा एतन्नक्षाणां यत्कृत्तिका एताह वै प्राच्यै दिशो न च्यवंते” अर्थात् कृत्तिका सब नक्षत्रों में प्रथम है।
- तैत्तिरीय ब्राह्मण १. ३. २. ७ में वाजपेय के यजन से सब वाकों के अवरुद्ध हो जाने का कथन है ।
- मैत्रायणी संहिता [21] एवं तैत्तिरीय ब्राह्मण [22] का कथन है कि देवों ने कुरुक्षेत्र में सत्र का सम्पादन किया था।
- “ तैत्तिरीय ब्राह्मण ” में सोम द्वारा ‘ सीता-सावित्री ' ऋषिका को तीन वेद देने का वर्णन विस्तारपूर्वक आता है-तं त्रयो वेदा अन्वसृज्यन्त।
- शतपथ ब्राह्मण (श्लोक १४.४.२.२३, ४.४.४.१३), तैत्तिरीय ब्राह्मण (३.९.१४) में क्षत्रियों को संरक्षण और व्यवस्था कायम करने के कारण सभी वर्णों में श्रेष्ठ बताया गया हैं ।
- तैत्तिरीय ब्राह्मण [7] में आया है कि कुरु-पांचाल शिशिर-काल में पूर्व की ओर गये, पश्चिम में वे ग्रीष्म ऋतु में गये जो सबसे बुरी ऋतु है।
- तैत्तिरीय ब्राह्मण ३. २. ५. १ ० व शतपथ ब्राह्मण १. १. ४. १ ९ इत्यादि के अनुसार इषीका वर्षवृद्ध है।
- ज्योतिष के महाग्रंथों शतपथ ब्राह्मण और तैत्तिरीय ब्राह्मण में मूल नक्षत्रों के विषय में तथा इनके वेदोक्त मंत्रों द्वारा उपचार के विषय में विस्तार से वर्णन मिलता है।
- तैत्तिरीय ब्राह्मण में कहा है कि उगते, अस्त होते तथा मध्यान्ह में ऊपर जाते आदित्य यानी सूर्य का ध्यान करते हुए विद्वान मनुष्य सम्पूर्ण कल्याण को प्राप्त होता है।
- तैत्तिरीय संहिता [266] एवं तैत्तिरीय ब्राह्मण [267] से प्रकट होता है कि पिता, पितामह एवं प्रपितामह तीन स्व-सम्बन्धी पूर्वपुरुषों का श्राद्ध किया जाता है।