दिन के वक़्त वाक्य
उच्चारण: [ din k veket ]
उदाहरण वाक्य
- (म.न.119) अगर कोई शख़्स अपनी बीवी से उस वक़्त जिमाअ(संभोग) करे जिसमें जिमाअ करना हराम है (जैसे रमज़ानुल मुबारक के महीने में दिन के वक़्त) तो उसका पसीना हराम से जुनुब होने वाले के पसीने का हुक्म नही रखता।
- अगर उनके लिए आसमान में कोई दरवाज़ा खोल दें फिर ये दिन के वक़्त इस में चढ़ जाएँ, कह देंगे कि हमारी नज़र बंदी कर दी गई है, बल्कि हम लोगों पर तो एकदम जादू कर रखा है.
- लेकिन अगर वह जानता हो कि जो ग़िज़ा दाँतों के बीच में रह गयी है वह दिन के वक़्त पेट में चली जायेगी और इसके बावुजूद ख़िलाल न करे तो उसका रोज़ा बातिल है चाहे वह ग़िज़ा हलक़ से नीचे जाये या न जाये।
- राकेश जी-दिन के वक़्त, जब उनके लिखने का समय होता था, तब वो बहुत ही कम शब्दों के पिता बन जाते थे, लेकिन रात को खाना खाने से पहले वो हमें अपने बचपन और जीवन के अनुभवों की कहानियाँ सुनाया करते।
- दिन के वक़्त तो वह इस तरह होती है कि उनकी पलकें झुक कर आँखों पर लटक जाती हैं, और तारीकी ए शब (रात्री के अंधकार) को अपनी चिराग़ (दिया) बना कर रिज़्क (जीविका) के ढूँढने में उस से मदद लेती हैं।
- बोली, “ क्यों, शादी शुदा औरत जॉब नहीं कर सकती? ” “ जी यह बात नहीं, घर घर जाना, जाने किस घर में कैसे लोग मिल जाएँ? ” उसने जवाब दिया, ” वैसे तो दिन के वक़्त ज़्यादातर हाउसवाइफ ही मिलती है.
- अगर कोई पूछे कि दरवाज़े अच्छे होते हैं या खिड़कियां तो बताना कि दरवाज़े दिन के वक़्त और खिड़कियां शामों को और शामें उनकी अच्छी होती हैं जो एक इन्तज़ार से दूसरे इन्तज़ार में सफ़र करते हैं हालांकि सफ़र तो उस आग का नाम है जो दरख़्तों से ज़मीन पर कभी नहीं उतरी
- बारिश हुई तो फूलों के तन चाक1 हो गये मौसम के हाथ भीग के सफ़्फ़ाक2 हो गये बादल को क्या ख़बर है कि बारिश की चाह में कितने बलन्द-ओ-बाला शजर ख़ाक हो गये जुगनू को दिन के वक़्त परखने की ज़िद करें बच्चे हमारे अहद के चालाक हो गये लहरा रही है बर्फ़ की चादर हट
- बारिश हुई तो फूलों के तन चाक1 हो गये मौसम के हाथ भीग के सफ़्फ़ाक2 हो गये बादल को क्या ख़बर है कि बारिश की चाह में कितने बलन्द-ओ-बाला शजर ख़ाक हो गये जुगनू को दिन के वक़्त परखने की ज़िद करें बच्चे हमारे अहद के चालाक हो गये लहरा रही है बर्फ़ की चादर हट...
- जीवन से भरे पानी प्राचीन नहरों से होकर महान नगर में आते हैं और पत्थर के बने जलकुण्डों में तमाम चौराहों पर और फैले हुए विशाल और विस्तीर्ण तालाबों में नृत्य करते हैं, वे दिन के वक़्त कलरव करते रहते हैं और रात को अपनी आवाज़ें बढ़ा देते हैं, रात जो यहां असीम होती है और तारोंभरी और हवाओं से मुलायम.