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देवकी नन्दन खत्री वाक्य

उच्चारण: [ deveki nenden khetri ]

उदाहरण वाक्य

  1. गंगा के किनारे पर सुमन का आलेख, अमर-मुलायम के बनते-बिगङते रिश्तों में परिवार, राजनीति, अम्बानी, अमिताभ, सहारा आदि ऐसे उलझे हैं कि कौन-कहाँ-कैसे फ़ंसा, यह जानना बाबू देवकी नन्दन खत्री के ऐय्यार के भी बस का नहीं होगा….
  2. गंगा के किनारे पर सुमन का आलेख, अमर-मुलायम के बनते-बिगङते रिश्तों में परिवार, राजनीति, अम्बानी, अमिताभ, सहारा आदि ऐसे उलझे हैं कि कौन-कहाँ-कैसे फ़ंसा, यह जानना बाबू देवकी नन्दन खत्री के ऐय्यार के भी बस का नहीं होगा….
  3. गंगा के किनारे पर सुमन का आलेख, अमर-मुलायम के बनते-बिगङते रिश्तों में परिवार, राजनीति, अम्बानी, अमिताभ, सहारा आदि ऐसे उलझे हैं कि कौन-कहाँ-कैसे फ़ंसा, यह जानना बाबू देवकी नन्दन खत्री के ऐय्यार के भी बस का नहीं होगा….
  4. इस कथा के प्रकाशित होने के उपरान्त हिन्दी का विपुल पाठक वर्ग, देवकी नन्दन खत्री (1861-1913) जो काशी नागरी प्रचारिणी सभा के अल्पकाल तक अध्यक्ष रहे थे, के `चन्द्रकान्ता' एवं `चन्द्रकान्ता संतति' के आकर्षक वर्णनों में डूबा रहा।
  5. एक विषम संयोग से देवकी नन्दन खत्री रहस्य और रोमांच से भरे तिलिस्मी साहित्य लिखने में पृवत्त हुये और सन् 1918 में उनकी पहली पुस्तक ' चन्द्रकान्ता' प्रकाशित हुई और इसके प्रकाशन के साथ ही उन्होंने प्रसिद्ध की सारी हदें पार कर लीं।
  6. एक विषम संयोग से देवकी नन्दन खत्री रहस्य और रोमांच से भरे तिलिस्मी साहित्य लिखने में पृवत्त हुये और सन् 1918 में उनकी पहली पुस्तक ' चन्द्रकान्ता ' प्रकाशित हुई और इसके प्रकाशन के साथ ही उन्होंने प्रसिद्ध की सारी हदें पार कर लीं।
  7. उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध तथा बीसवीं शताब्दी की शुरुआत के अधिकांश साहित्यकारों जैसे भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, प्रताप नारायण मिश्र, देवकी नन्दन खत्री, किशोरी लाल गोस्वामी, राधाचरण गोस्वामी और गंगा प्रसाद गुप्त ने इस तरह की संचेतना के निर्माण में मदद की.
  8. गंगा के किनारे पर सुमन का आलेख, अमर-मुलायम के बनते-बिगङते रिश्तों में परिवार, राजनीति, अम्बानी, अमिताभ, सहारा आदि ऐसे उलझे हैं कि कौन-कहाँ-कैसे फ़ंसा, यह जानना बाबू देवकी नन्दन खत्री के ऐय्यार के भी बस का नहीं होगा ….
  9. बेनी का मन रामदेई के पास जाने का न होता लेकिन महीने दो महीनों में जब देवकी नन्दन खत्री के उपन्यास की किसी रानी या कुटनी का रूप वर्णन पढ़ते तो लगता कि इच्छाओं के कई पैरों वाले गोजर देह के किसी हिस्से पर चढ़ रहे हैं।
  10. तदनंतर हिन्दी का विशाल पाठक वर्ग देवकी नन्दन खत्री (1861-1913) के ' चन्द्रकान्ता ' एवं ' चन्द्रकान्ता संतति ' के आकर्षक वर्णनों में डूबा और हिन्दी ही नहीं उर्दू के भी विशाल पाठक इसे पढ़ने का आनन्द उठाने हेतु हिन्दी सीखने को उद्यत हुए।
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