नवारुण भट्टाचार्य वाक्य
उच्चारण: [ nevaarun bhettaachaarey ]
उदाहरण वाक्य
- सम्मेलन को संबोधित करते हुए विशिष्ट अतिथि सुप्रसिद्ध कवि नवारुण भट्टाचार्य ने कहा कि मुक्तिबोध और शंकर गुहा नियोगी को याद करते हुए आज फिर से ' संघर्ष और निर्माण' के नारे की याद आती है।
- सम्मेलन को संबोधित करते हुए विशिष्ट अतिथि सुप्रसिद्ध कवि नवारुण भट्टाचार्य ने कहा कि मुक्तिबोध और शंकर गुहा नियोगी को याद करते हुए आज फिर से ‘ संघर्ष और निर्माण ' के नारे की याद आती है।
- बांग्ला और भारतीय साहित्य में सामाजिक यथार्थ और वर्चस्ववादी सत्ता के विरुद्ध वंचितों के विद्रोह की यह कथा ‘ यह मृत्यु उपत्यका नहीं है मेरा देश ', लिखने वाले नवारुण भट्टाचार्य की अत्यन्त महत्वपूर्ण साहित्यिक कृति है।
- कैनडा न सही कलकत्ता तीन दिनों के लिए तीन मर्तबा ज़रूर गया हूं, ‘ओह, आमार कोलकोता!' जैसा कोई हृदयविदारक, मर्मांतक नवारुण भट्टाचार्य मोतुन जिनिस लिख मारता, लिखा? कहां लिखा? बनारस, बालासोर, बलांगीर, बलरामपुर सब अनलिखे पड़े हुए हैं.
- क्या करूं... बनारस से निकला आदमी आखिर कहां जाए? किशनजी पर नवारुण भट्टाचार्य की एक कविता बांग्ला के कवि नवारुण भट्टाचार्य ने माओवादी नेता किशनजी की हत्या पर एक कविता लिखी है जिसका अनुवाद कृपाशंकर चौबे ने किया है।
- क्या करूं... बनारस से निकला आदमी आखिर कहां जाए? किशनजी पर नवारुण भट्टाचार्य की एक कविता बांग्ला के कवि नवारुण भट्टाचार्य ने माओवादी नेता किशनजी की हत्या पर एक कविता लिखी है जिसका अनुवाद कृपाशंकर चौबे ने किया है।
- बांग्ला में यह विशेषता जीवनानंद दास, सुभाष मुखोपाध्याय, सुनील गंगोपाध्याय, नीरेंद्रनाथ चक्रवर्ती, शंख घोष, शक्ति चट्टोपाध्याय, नवनीता देवसेन, नवारुण भट्टाचार्य, जय गोस्वामी और अभीक मजुमदार की कविताओं में हम देख सकते हैं।
- नवारुण भट्टाचार्य कहते हैं-' आखिर एक अकेली कविता / मचा सकती है कितना कोलाहल',खैर कोलाहल मचा और 'तुमुल कोलाहल कलह में हृदय की बात' सुनते हुए उसी प्रवाह में अपनी (भी) यह कविता लिखी गई। आइए इसे देखें...साझा करें..
- इस अवसर पर नवारुण भट्टाचार्य ने कहा कि जिस कवि की पुस्तक का लोकार्पण इस महाद्वीप के महान कवि केदारनाथ सिंह कर रहे हों, उसकी कविता पढ़ रहे हों, उन पर बात कर रहे हों, उसकी श्रेष्ठता अपने आप प्रमाणित हो जाती है।
- नवारुण भट्टाचार्य कहते हैं-' आखिर एक अकेली कविता / मचा सकती है कितना कोलाहल ', खैर कोलाहल मचा और ' तुमुल कोलाहल कलह में हृदय की बात ' सुनते हुए उसी प्रवाह में अपनी (भी) यह कविता लिखी गई।