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पांडुरंग वामन काणे वाक्य

उच्चारण: [ paanedurenga vaamen kaan ]

उदाहरण वाक्य

  1. महामहोपाध्याय डॉ पांडुरंग वामन काणे धर्मशास्त्र का इतिहास में आथर्वण ज्योतिष (आथर्वण यानी अथर्ववेद के ज्ञाता ज्योतिषी) के हवाले से लिखते हैं कि अगर व्यक्ति सफलता चाहता है तो उसे तिथि, नक्षत्र, करण एवं मुहूर्त पर विचार करके कर्म या कृत्य करना चाहिए।
  2. श्वरैया (1955)6. जवाहरलाल नेहरु (1955)7. गोविन्द बल्लभ पन्त (1957)8. डॉ. धोंडो केशव कर्वे (1958)9. डॉ. बिधान चन्द्र राय (1961)10. पुरुषोत्तम दास टंडन (1961)11. डॉ. राजेंद्र प्रसाद (1962)12. डॉ. जाकिर हुसैन (1963)13. डॉ. पांडुरंग वामन काणे (1963)14. लाल बहादुर शास्त्री (मरणोपरांत) (1966)15. इंदिरा गाँधी (1971)16. वराहगिरी वेंकटगिरी (1975)17.
  3. प्राचीन भारत में गोहत्य एवं गोमांसाहार पंडित पांडुरंग वामन काणे ने लिखा है “ऐसा नहीं था कि वैदिक समय में गौ पवित्र नहीं थी, उसकी 'पवित्रता के ही कारण वाजसनेयी संहिता (अर्थात यजूर्वेद) में यह व्यवस्था दी गई है कि गोमांस खाना चाहिए”-धर्मशास्त्र विचार, मराठी, पृ 180)
  4. महाराष्ट्र से अब तक भारतीय संविधान के जनक बी. आर. अम्बेडकर, विनोबा भावे, मोरारजी देसाई, पांडुरंग वामन काणे, धोंडो केशव कर्वे, लता मंगेशकर. जे. आर. डी. टाटा और भीमसेन जोशी को भारत रत्न से सम्मानित किया जा चुका है।
  5. महर्षि डॉ. धोंडो केशव कर्वे · १९६१: डॉ. बिधन चंद्र रॉय · १९६१: पुरुषोत्तम दास टंडन · १९६२: डॉ. राजेन्द्र प्रसाद · १९६३: डॉ. ज़ाकिर हुसैन · १९६३: डॉ. पांडुरंग वामन काणे · १९६६: लालबहादुर शास्त्री · १९७१: इन्दिरा गाँधी · १९७५: वराहगिरी वेंकट गिरी · १९७६: के. कामराज · १९८०:
  6. पंडित पांडुरंग वामन काणे ने लिखा है ' ' ऐसा नहीं था कि वैदिक समय में गौ पवित्र नहीं थी, उसकी ' पवित्रता के ही कारण वाजसनेयी संहिता (अर्थात यजूर्वेद) में यह व्यवस् था दी गई है कि गोमांस खाना चाहिए ''-धर्मशास् त्र विचार, मराठी, पृ 180)
  7. गोविंद वल्लभ पंत-1957 8. डॉ. धोंडो केशव कर्वे-1958 9. डॉ. बिधान चंद्र रॉय-1961 10. पुरूषोत्त्मदास टंडन-1961 11. डॉ. राजेन्द्र प्रसाद-1962 12. डॉ. जाकिर हुसैन-1963 13. डॉ. पांडुरंग वामन काणे-1963 14.
  8. डॉ. पांडुरंग वामन काणे का कथन है कि यज्ञ करते समय पुरोहित कुछ प्रसिद्ध एवं यशस्वी ऋषियों को चुनकर उनके नाम से यज्ञ में आहुति देता था और प्रार्थना करता था कि मैं अग्नि में वैसे ही आहुति देता हूं जैसे भृगु ने दी थी, जैसे अंगिरा ने दी थी, अत्रि ने दी थी।
  9. भारत की अति प्राचीन वैदिक भाषा के रूप में यदि आज संस्कृत को विश्व की सभी भाषाओं की जननी माना जाता है और भारत की अति प्राचीन धर्म संस्कृति को यदि विश्व भर में बड़े सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है, तो उसमें महान भारतीय संस्कृतज्ञ और विद्वान पंडित डॉक्टर पांडुरंग वामन काणे के अमूल्य योगदान को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता।
  10. भारत की अति प्राचीन वैदिक भाषा के रूप में यदि आज संस्कृत को विश्व की सभी भाषाओं की जननी माना जाता है और भारत की अति प्राचीन धर्म संस्कृति को यदि विश्व भर में बड़े सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है, तो उसमें महान भारतीय संस्कृतज्ञ और विद्वान पंडित डॉक्टर पांडुरंग वामन काणे (जन्म-7 मई, 1880 महाराष्ट्र-मृत्यु-18 अप्रॅल, 1972) के अमूल्य योगदान को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता।
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