प्रशस्तपाद वाक्य
उच्चारण: [ pershestepaad ]
उदाहरण वाक्य
- अत: प्रशस्तपाद ने यह बताया कि मन वह द्रव्य है, जो मनस्त्वजाति से युक्त हो।
- प्रशस्तपाद (चतुर्थ शती) के अनुसार पदार्थ वह है जिसमें अस्तित्व, अभिधेयत्व और ज्ञेयत्व हो।
- प्रशस्तपाद के कथनों का आशय भी यह है कि आकाश वह है, जिसका व्यापक शब्द है।
- अब जो ग्रन्थ उपलब्ध है, वह प्रशस्तपाद भाष्य तथा पदार्थ धर्म संग्रह दोनों नामों से प्रसिद्ध है।
- वैशेषिक दर्शन में आचार्य प्रशस्तपाद के मन्तव्यों, महत्त्व और योगदान का उल्लेख संक्षेप में इस प्रकार है-
- नयचक्र तथा नयचक्रव्याख्या में जो भाष्य वचन उद्धृत किए गए है, वे प्रशस्तपाद भाष्य में उपलब्ध नहीं हैं।
- प्रशस्तपाद का यह भी कहना है कि नित्य द्रव्यों के अतिरिक्त अन्य सभी पदार्थ किसी पर आश्रित रहते हैं।
- प्रशस्तपाद के अनुसार द्वेष वह गुण है, जिसके उत्पन्न होने पर प्राणी अपने को प्रज्वलित-सा अनुभव करता है।
- सप्तपदार्थवाद वैशेषिकसम्मत पदार्थमीमांसा के विकासक्रम के द्वितीय चरण में प्रशस्तपाद प्रभृति भाष्यकारों ने षट्पदार्थवाद को प्रतिष्ठापित कर दिया था।
- प्रशस्तपाद ने पृथ्वी के समान जल में भी समवाय सम्बन्ध से चौदह गुणों के पाये जाने का उल्लेख किया है।