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प्रश्नोपनिषद वाक्य

उच्चारण: [ pershenopenised ]

उदाहरण वाक्य

  1. प्रश्नोपनिषद के इस चतुर्थ प्रश्न में गार्ग्य ऋषि जी महर्षि पिप्पलाद जी से पूछते हैं की हे ऋषिवर शरीर में कौन सी इन्द्री शयन करती है और कौन-सी जाग्रत रहती है तथा कौन सी इन्द्री स्वप्न देखती है एवं कौन सी इंद्री सुख का अनुभव करती है और यह सब किसमें स्थित है.
  2. इस संदर्भ में प्रश्नोपनिषद का ऋषि पृष्ठ 130 पर कहता है-पुण्य कार्य करने से हृदय में बैठे हुए आत्मा को उदान नाम का प्राण पुण्यलोक में ले जाता है, पाप कर्म करनेसे आत्मा को उदान पाप लोक में ले जाता है, दोनों प्रकार के कर्म करनेसे आत्मा को उदान मनुष्य लोक में ले जाता है।
  3. प्रश्नोपनिषद उपनिषद छ: भागों में विभाजित है जिसके प्रत्येक भाग के दो खण्ड हैं इस उपनिषद में प्रश्नों द्वारा रथि और प्राण के मह्त्व, सृष्टि का सृजन एवं ब्रह्म के स्वरूप का विवेचन किया गया है जिसमें प्राणों का मह्त्व सर्वोपरी बताया गया है तथा ओम की मात्राओं एवं उसकी सत्ता का रूप दर्शाया है.
  4. जैसे प्रश्नोपनिषद में आता है की मनुष्य के अन्दर ७ २ करोड़ ७ २ लाख, १ ० हजार और १ नाडी है … ‘ करीब करीब या अबाउट ‘ वाला ज्ञान नही … ऐसे पूर्वजो की तुम संतान हो …! तो ये अधिदैविक ज्ञान है … लेकिन जिन्हों ने ये ज्ञान पाया वो ऋषी मुनियों ने भी कहा की, जिस से ये अधिदैविक ज्ञान प्रकाशित होता वो ब्रम्हज्ञान ही सर्वोपरि है..
  5. प्रश्नोपनिषद के छठे प्रश्न में सुकेशा भारद्वाज जी उनसे पूछते हैं हे ऋषिवर एक बार कौसल देश के राजपुरुष हिरण्यनाभ ने मुझसे एक प्रश्न किया था उसने मुझसे सोलह कलाओं से पूर्ण पुरुष के बारे में जानना चाहा किंतु मुझे ऎसे किसी व्यक्ति का भान नहीं है इस कारण मैं उन्हें इस प्रश्न का उत्तर न दे सका कृपा कर आप यदि किसी ऎसे पुरूष के बारे में जानते हैं जो सोलह कलाओं से पूर्ण हो तो उसका ज्ञान मुझे भी प्रदान करें
  6. * गृहस्थ आश्रम में ब्रह्मचारी: शास्त्र के नियमानुसार ऋतू काल में रात्रि के समय नियमाकुल, स्त्री प्रसंग करते है तो वे शास्त्र की आज्ञा का पालन करने के कारण ब्रह्मचारी के तुल्य ही है--प्रश्नोपनिषद--सृष्टि रचना भगवान् शिव-विश्व को उत्पन्न किया / रक्षा के लिए अपने दाहिने अंग से-ब्रह्म (रजोगुण) और अपने बांये अंग से विष्णु (सत्व गुण) ब्रह्मा-मन से (संकल्प)-मरीचि तथा पुत्रो पुलस्त्य बाहों उरुओ चरण क्षत्रिय वैश्य शुद् र.
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