बनारसी बाबू वाक्य
उच्चारण: [ benaaresi baabu ]
उदाहरण वाक्य
- बनारसी ठग ', ‘ बनारसी बाबू ', ‘ दिल्ली का ठग ', ‘ दिल्ली-6 ', ‘ नन्हा जैसलमेर ', ‘ चांदनी चौक ', ‘ लालकिला ', ‘ जंतर-मंतर ', ‘ हावड़ा ब्रिज ' जैसी फिल्मों पर बंबई या मुंबई शीर्षक वाली फिल्में हावी रहीं।
- भाई बनारसी बाबू अभिवादन, क्या ये आपका असली नाम है या …….? जब आपने सब लोगन के रंग की पसंद का वर्णन उसी रंग के फॉण्ट में किया त फिर छक्कन भाई के साथ अन्याय क्यों? सफ़ेद फॉण्ट से काहे नहीं लिखा भाई? पर वाकई मजा आ गया भैया, जि ओ.
- लालाजी भारी मन से बोले. “तो फिर सुनो. वो जो बनारसी बाबू हैं न, जो दूकान दूकान साइकिल पर नोट चेक करने की मसीन बेचने को आये थे, बस यूँ समझो, हमारे दूर के रिश्तेदार हैं.” “दूर के?” “बस, वो ऐसा है न के, माँ ने मेरी बात चलाई हुई है... सादी की...” छोटू थोडा शर्माते हुए बोला.
- इसी दौरान ‘ साजन चले ससुराल ', ‘ बनारसी बाबू ', ‘ दूल्हे राजा ', ‘ महाराजा ', ‘ बड़े मियां छोटे मियां ', ‘ हसीना मान जाएगी ', ‘ जोरु का गुलाम ', ‘ हद कर दी आपने ' जैसी फिल्में गोविंदा और इंडस्ट्री के लिए याद रखने वाली फिल्में बनीं।
- उधर दूसरे साथी हिमांशु जी जाने किस हिमालय पर तपस्या के लिए चले गए हैं, जहां तक न कोई अंतरजाल पहुँच पा रहा है और न ही कोई दूर संचार, पता नहीं ई बनारसी बाबू कौन गिलौरी गटक रहे हैं!..चातुर्य तो देखिये मेरे इन साथियों का कि इनमें सबसे कम आयु का मैं हूँ-अनुभवहीन और मंदमति सा-और कह दिए कि 'चलौ सैद्धांतिकी कै खेत जोतौ'!..
- भई बनारसी बाबू, आप तो आते ही छा गए | काशी की विलक्षण संस्कृति के जो रंग आपने यहाँ प्रस्तुत किये हैं वो बड़े अच्छे लगे | छांगुर गुरु का परिचय पाकर लगा जैसे उन्हें बरसों से जानता हूँ | कभी वक़्त मिले तो हमसे भी मुलाक़ात करिये मैं भी यहीं काशी में ही हूँ | अपना संपर्क सूत्र देने का कष्ट करें | हां, होली कॉन्टेस्ट के लिए शुभकामनाएँ स्वीकार करें | साभार,
- वोह बनारसी बाबू तेरा दूर का चचेरा भाई निकला था...? कोई और भी पूछ रहा था हमें मसीन के बारे में, इसीलिए उसकी याद आई...“ ”अरे नहीं लालाजी, मेरा भाई नहीं, वो लड़की के बापू के चचेरे भाई का बेटा था वो... इसी लिए तो इतना दिश्कोउंत दिया था...आज कल तो अपना खुद का भाई भी कमिसन न छोड़े...“ ”तुझे ठीक से याद है न वो चचेरे भाई का बेटा था?“ लालाजी ने पूछा. “हाँ लालाजी, अगर बात बन जाती तो साला ही न बनता मेरा वोह?
- -पर यह ग्राम खेवली (जहां सब सदाचार की तरह सपाट और ईमानदारी की तरह असफल रहा) का बनारसी बाबू क्या कर सका? ३६ साल की उमिर में ही ब्रेन-ट्यूमर से मर गया! बहुत हीरो बना था न, चला था आजादी के बाद के भारत की 'पटकथा' लिखने! इसका हस्र तो यही होना था! आपकी इस 'ट्यूटोरियल पोस्ट' का भी कोई असर नहीं होना | आपकी सारी चिंताएं व्यर्थ की हैं, होने दीजिये जहां तहां भाषा में कविता के नाम पर चालू हो मसखरेबाजी/चुटकुलेबाजी/बेल्बूटाकारी/मलमल-बुनाई/मखमल-बुनाई!