भारत में जातिवाद वाक्य
उच्चारण: [ bhaaret men jaativaad ]
उदाहरण वाक्य
- 1932 में बाबासाहेब अंबेडकर ने कास्ट इन इंडिया (भारत में जातिवाद) नामक शोध पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने इस बात का स्पष्ट उल्लेख किया था कि जाति किस तरह राष्ट्र विरोधी और विकास विरोधी है।
- सज्जनो! मैंने आपके सामने हिन्दू समाज और जातिवाद की रचना के सम्बंध में जो थोड़े से विचार व्यक्त किये हैं, यदि आपने इन्हें ध्यान से सुना है, तो आप इस नतीजे पर पहुंचेंगे कि भारत में जातिवाद की जड़ ब्राह्मणवाद है।
- सज्जनो! मैंने आपके सामने हिन्दू समाज और जातिवाद की रचना के सम्बंध में जो थोड़े से विचार व्यक्त किये हैं, यदि आपने इन्हें ध्यान से सुना है, तो आप इस नतीजे पर पहुंचेंगे कि भारत में जातिवाद की जड़ ब्राह्मणवाद है।
- क्योंकि जब तक भारत में जातिवाद है, हिन्दू अन्तरजातीय विवाह नहीं करेगें और अपने से बाहरी लोगो में कोई सामाजिक संसर्ग नहीं करेंगे और यदि हिंदू का विश्व के किसी अन्य प्रदेश में स्थानान्तरण हो जाए, तो भारतीय जातिवाद एक विश्व समस्या बन जायेगा।
- जाति आधारित जनगणना के विरोध में प्रिंट मीडिया से लेकर इलेक्ट्रानिक मीडिया तक ने ऐसी भ्रांति फैला रखी है, मानो इसके बाद भारत में जातिवाद का जहर फैल जाएगा और भूमंडलीकरण के इस दौर में दुनिया हमें एक पिछड़े राष्ट्र के रुप में दर्ज करेगी।
- 2 फरवरी 1986 को दिल्ली में पोप जोन पॉल द्वितीय ने कैथोलिक बिशपों को सम्बोधित करते हुये कहा था कि हमें भारत में जातिवाद को समाप्त करने के लिये कार्य करना होगा क्योंकि जातिवाद जो इंसान को एक ग्रुप से दूसरे ग्रुप में बांट देता है उसे सबसे पहले ईसाइयत / चर्च में समाप्त करना होगा।
- इसमें कोई शक नहीं भारत में जातिवाद के चलते सम्पूर्ण दलित समाज को सवर्ण जातियों ने हमेशा सामाजिक व वैयक्तिक घृणा की दृष्टि देखा है, जिसके कारण उनके अन्दर पनपी व सवर्ण समाज द्वारा कूट-कूट कर भरी गई हीनभावना ने दलितों के अंदर छिपी प्रतिभा को कहीं बाहर आने का मौका नहीं दिया।
- ब्राह्मण वर्ण स्वयं को हिंदू धर्म के चारों वर्णों (four varnas) में सर्वोच्च स्थान पर काबिज होने का दावा करता है दलित शब्द उन लोगों के समूह के लिए एक स्वयंभू पदनाम है जिनको अछूत (untouchables) या नीची जाती (caste) का माना जाता है स्वतंत्र भारत में जातिवाद से प्रेरित हिंसा और घृणा अपराध (hate crime) को बहुत ज्यादा में देखा गे गया
- विश्व, मीडिया रिपोर्टें बताती हैं कि आज भी भारत में जातिवाद की जडे़ इतनी गहरी और भयानक हैं कि आए दिन यहाँ दलित,पिछड़ी या अन्य कमजोर वर्गों की महिलाओं के साथ ज्यादातर दबंग वर्गों द्वारा ज्यादतियाँ-बलात्कार की घटनाएं की जाती हैं, उनकी बेटियों की बारात चढ़ने से रोकी जाती हैं, उन्हें मँहगा न्याय भी नहीं के बराबर मिल पाता है, मेहनतकश मजदूर यही महिलाएं है, बच्चे कुपोषण-अशिक्षा से ज्यादा पीड़ित हैं.
- इतिहासिक रूप में यह शपथ कब बनी होगी? अगर हमारे सन्यासी, ऋषि, मुनि यह शपथ लेते थे तो हमारे धर्म ग्रंथों में जातिवाद इतना गहरा क्यों फ़ैला और विवेकानन्द से पहले हमारे सन्यासियों ने भारत में जातिवाद से उठने का कार्य क्यों नहीं किया? पुस्तक में कई घटनाओं का वर्णन है जिसमें स्वामी विवेकानन्द का जाति से जुड़े अपने संस्कारों को बदलने का प्रयास है और अन्य धर्मों एवं तथाकथित “ निम्न जातियों ” के लोगों से निकटता के सम्बन्ध बनाने की बाते हैं, जैसे कि इस दृश्य में: