महात्मा मुंशीराम वाक्य
उच्चारण: [ mhaatemaa muneshiraam ]
उदाहरण वाक्य
- सन्यास लेने से पूर्व उन्हें महात्मा मुंशीराम के नाम से जाना जाता था जिनके बारे में गांधीजी ने स्वयं कहा था ' ' जब कोई व्यक्ति मुझे महात्मा कहता है तो मैं सोचता हूं कि पहचानने में कोई गलती हुई है।
- गुरुकुल के संस्थापक महात्मा मुंशीराम पिछली शतब्दी के भारतीय सांस्कृतिक पुनर्जागरण में असाधारण महत्व रखनेवाले आर्यसमाज के प्रवर्तक महर्षि दयानंद (1824-1883 ई.) के सुप्रसिद्ध ग्रंथ ' सत्यार्थ-प्रकाश ' में प्रतिपादित शिक्षा संबंधी विचारों से बड़े प्रभावित हुए।
- वे अपने परिवार का त्याग कर चुके थे, “वानप्रस्थी” का जीवन बिता रहे थे और अपना नाम “ मुंशीराम जिज्ञासु ” लिखते थे, पर लोग उनके त्यागपूर्ण और परोपकार में डूबे जीवन को देखकर उन्हें सम्मान से “ महात्मा मुंशीराम ” कहते थे.
- बाद में जब उन्होंने अपनी आत्मकथा “ सत्य के प्रयोग ” लिखी, तो उसमें इस यात्रा का भी उल्लेख करते हुए लिखा, ” जब मैं पहाड़ से दीखने वाले महात्मा मुंशीराम जी के दर्शन करने और उनका गुरुकुल देखने गया, तो मुझे वहां बड़ी शांति मिली.
- नवंबर, 1898 ई. में पंजाब के आर्यसमाजों के केंद्रीय संगठन आर्य प्रतिनिधि सभा ने गुरुकुल खोलने का प्रस्ताव स्वीकार किया और महात्मा मुंशीराम ने यह प्रतिज्ञा की कि वे इस कार्य के लिए, जब तक 30,000 रुपया एकत्र नहीं कर लेंगे, तब तक अपने घर में पैर नहीं रखेंगे।
- इसका ही परिणाम था कि महात्मा मुंशीराम (बाद में स्वामी श्रद्धानंद) और लाला देवराज जैसे आर्य-पुरुषों ने सन् १ ८ ९ ० में जालंधर में कन्या पाठशाला की स्थापना कर दी, जो आज कन्या महाविद्यालय के रूप में भारत ही नहीं विदेशों तक में प्रसिद्ध है।
- उन्होंने पूना से महात्मा मुंशीराम जी को हिंदी में पत्र लिखा जिसमें अन्य बातों के साथ लिखा: "..........मेरे बालकों के लिए जो परिश्रम आपने उठाया और जो प्यार बतलाया उस वास्ते आपका उपकार मानने को मैंने भाई एंडरूज़ को लिखा था लेकिन आपके चरणों में शीश झुकाने को मेरी उम्मेद है.
- नवंबर, 1898 ई. में पंजाब के आर्यसमाजों के केंद्रीय संगठन आर्य प्रतिनिधि सभा ने गुरुकुल खोलने का प्रस्ताव स्वीकार किया और महात्मा मुंशीराम ने यह प्रतिज्ञा की कि वे इस कार्य के लिए, जब तक 30,000 रुपया एकत्र नहीं कर लेंगे, तब तक अपने घर में पैर नहीं रखेंगे।
- उन्होंने 27 नवम्बर, 1913 को महात्मा मुंशीराम जी को दिल्ली से हिंदी में अपने हाथ से पत्र लिखा जिसमें गुरुकुल के विद्यार्थियों और शिक्षकों की भावना और त्याग की भूरि-भूरि प्रशंसा की, इसे देशभक्तिपूर्ण कार्य बताया, भारत माता के प्रति कर्तव्यपालन बताया और देश के युवकों एवं वृद्धों के समक्ष एक आदर्श उदाहरण बताया.