मानस का हंस वाक्य
उच्चारण: [ maanes kaa hens ]
उदाहरण वाक्य
- डॉ. रांगेय राघव द्वारा ÷ रत्ना की बात ' और अमृतलाल नागर द्वारा लिखित ÷ मानस का हंस ' जीवनी एक है लेकिन दो अलग उपन्यासकारों ने अपनी भिन्न-भिन्न कल्पना के अलग दृष्टिकोण से दो भिन्न उपन्यासों की रचना कर पाये है।
- जैसे तुलसी दास को भाषा (अवधी) में रामचरितमानस लिखने पर काशी और अयोध्या के पंडों ने (मानस का हंस) जाति बाहर करने की कोशिशें की थीं, उसी तरह हिन्दी को विद्वज्जनों की भाषा में ढाल दिया गया.
- तो उन्हे कुछ उपहार लेने का समय न मिला तो आनन-फानन नागर जी द्वारा लिखित ' मानस का हंस ' की एक प्रति मेरे घर से बोधि भैया ने बरामद की और जबरिया सुकुल जी को सामूहिक तौर पर भेंट करवा दी..
- बूंद और समुद् तथा अमृत और विष जैसे वर्तमान जीवन पर लिखित उपन्यासों में ही नहीं, एकदा नैमिषारण्ये तथा मानस का हंस जैसे पौराणिक-ऐतिहासिक पीठिका पर रचित सांस्कृतिक उपन्यासों में भी उन्होंने उत्पीड़कों का पर्दाफाश करने और उत्पीड़ितों का साथ देने का अपना व्रत बखूबी निभाया है।
- इस समूचे प्रकरण में सबसे त्रासद पक्ष यह भी है कि हिंदी साहित्य के अनेक लेखकों पर मध्ययुगीन इतिहास का प्रभाव पड़ा है, खासकर आधुनिक युगीन लेखकों के ऊपर, यहां मैं सिर्फ एक उदाहरण दे रहा हूं-अमृतलाल नागर कृत उपन्यास है ‘ मानस का हंस ' ।
- इसके अलावा कृष्णाश्रयी शाखा के भी कवियों की परंपरा थी जो बाबर के ही युग की है जिनमें सूरदास, नंददास, कृष्णदास, कुंभनदास, छीतस्वामी, मीराबाई इन सबने बाबरी मस्जिद के संदर्भ में उन सब बातों को नहीं उठाया, जिनका नागरजी ने मानस का हंस में जिक्र किया है।
- बूँद और समुद्र ' में पौराणिक शिल्प के अभिनव प्रयोग के अनन्तर ‘ अमृत और विष ' में अपने पात्रों की दुहरी सत्ताओं के आधार पर दो-दो कथाओं को साथ-साथ चलाना, ‘ मानस का हंस ' में फ़्लैश बैक के दृश्य रूप का व्यापक प्रयोग करना उनकी शिल्प सजगता के उदाहरण हैं.
- शतरंज के मोहरे, सुहाग के नूपुर, सात घूँघट वाला मुखड़ा, मानस का हंस, और नाच्यौ बहुत गोपाल जैसी अप्रतिम साहित्यिक कृतियों के लेखक श्री नागर ने अपनी लेखनी से साहित्य की सभी प्रमुख विधाओं जैसे उपन्यास, निबन्ध, रेखाचित्र, संस्मरण, जीवनी तथा व्यंग्य को समृद्ध किया है.
- ‘ बूँद और समुद्र ' तथा ‘ अमृत और विष ' जैसे वर्तमान जीवन पर लिखित उपन्यासों में ही नहीं, ‘ एकदा नैमिषारण्ये ' तथा ‘ मानस का हंस ' जैसे पौराणिक-ऐतिहासिक पीठिका पर रचित सांस्कृतिक उपन्यासों में भी उत्पीड़कों का पर्दाफ़ाश करने और उत्पीड़ितों का साथ देने का अपना व्रत उन्होंने बखूबी निभाया है.
- मैंने अमृत लाल नगर जी की सिर्फ दो ही रचनाए पढ़ी है-' सुहाग के नूपुर ' और ' मानस का हंस '-लेकिन इन दोनों रचनाओ में नगरजी ने जिस प्रकार से भाषा एवं मानवीय भावनाओ के स्तर पर अपनी मजबूती दिखाई है कि मेरी नजर में ये कालजयी रचनाए है और नागरजी का एक अलग ही स्थान है।