मुज़फ्फर अली वाक्य
उच्चारण: [ mujefefr ali ]
उदाहरण वाक्य
- लखनऊ पर बहुत सी प्रसिद्ध फिल्में बनी हैं जैसे शशि कपूर की जुनून, मुज़फ्फर अली की उमराव जान एवं गमन, सत्यजीत राय की शतरंज के खिलाड़ी और इस्माइल मर्चेंट की शेक्स्पियर वाला की भी आंशिक शूटिंग यहीं हुई थी।
- लखनऊ पर बहुत सी प्रसिद्ध फिल्में बनी हैं जैसे शशि कपूर की जुनून, मुज़फ्फर अली की उमराव जान एवं गमन, सत्यजीत राय की शतरंज के खिलाड़ी और इस्माइल मर्चेंट की शेक्स्पियर वाला की भी आंशिक शूटिंग यहीं हुई थी।
- लखनऊ पर बहुत सी प्रसिद्ध फिल्में बनी बा जैसे शशि कपूर की जुनून, मुज़फ्फर अली की उमराव जान एवं गमन, सत्यजीत राय की शतरंज के खिलाड़ी अउर इस्माइल मर्चेंट की शेक्स्पियर वाला की भी आंशिक शूटिंग यहीं हुई थी।
- लखनऊ पर बहुत सी प्रसिद्ध फिल्में बनी हैं जैसे शशि कपूर की जुनून, मुज़फ्फर अली की उमराव जान एवं गमन, सत्यजीत राय की शतरंज के खिलाड़ी और इस्माइल मर्चेंट की शेक्स्पियर वाला की भी आंशिक शूटिंग यहीं हुई थी।
- लखनऊ पर बहुत सी प्रसिद्ध फिल्में बनी बा जैसे शशि कपूर की जुनून, मुज़फ्फर अली की उमराव जान एवं गमन, सत्यजीत राय की शतरंज के खिलाड़ी अउर इस्माइल मर्चेंट की शेक्स्पियर वाला की भी आंशिक शूटिंग यहीं हुई थी।
- और अब इसी नज़्म का एक बिलकुल अलग अंदाज़ मुज़फ्फर अली जी के एल्बम “पैग़ाम-ए-मोहब्बत” से. मुज़फ्फ़र साहब ने बिलकुल अलग तरह का प्रयोग किया है इस नज़्म के साथ, उसे क़ाज़ी नज़रुल इस्लाम की बंगाली कविता “मोनी पोड़े आज शे कोन” के साथ मिला कर.
- और अब इसी नज़्म का एक बिलकुल अलग अंदाज़ मुज़फ्फर अली जी के एल्बम “पैग़ाम-ए-मोहब्बत” से. मुज़फ्फ़र साहब ने बिलकुल अलग तरह का प्रयोग किया है इस नज़्म के साथ, उसे क़ाज़ी नज़रुल इस्लाम की बंगाली कविता “मोनी पोड़े आज शे कोन” के साथ मिला कर.
- |बहुत दिनों बाद, अपनी धरती से दूर अचानक मन तृप्त हो गया | किसे धन्यवाद दूँ, आपको, आशा जी को, मुज़फ्फर अली को, शहरयार को, खय्याम साहब को | ब्लॉग के चार वर्ष पूरे होने पर बधाई दूँ या नहीं क्योंकि यह तो बरसा-बरस चलने वाला है | शुभेच्छु रमेश जोशी
- बीबीसी श्रोता-70 के दशक में समानांतर सिनेमा चला था जिसमें आप भी शामिल थे, आज उसका क्या हुआ, लोगों का ख़याल था कि ये लोग सियासी तौर पर ज़्यादा सक्रिय हैं जबकि असली जिन्दगी में एकाध, शबाना आज़मी या मुज़फ्फर अली को छोड़कर कोई भी सक्रिय राजनीति में आया नहीं, न ही अपना दृष्टिकोण उन्होंने बताया?
- शहरयार की कलम और आवाज तलत अज़ीज़ की | मुज़फ्फर अली की इस फिल्म का एक एक दृश्य अपने आप में एक मुकम्मल ग़ज़ल है | खोने का डर खोने से ज्यादा डरावना होता है | लड़कपन, जवानी इसी उहापोह में गुज़ार दी | दो कदम चलने के बाद रास्ते खो जाने का डर कदमों को बाँध देता है | वही डर मौजूं है इस ग़ज़ल में |