रस सिद्धांत वाक्य
उच्चारण: [ res sidedhaanet ]
उदाहरण वाक्य
- इन्होंने रस सिद्धांत की मनोवैज्ञानिक व्याख्या (अभिव्यंजनावाद) कर अलंकारशास्त्र को दर्शन के उच्च स्तर पर प्रतिष्ठित किया तथा प्रत्यभिज्ञा और त्रिक दर्शनों को प्रौढ़ भाष्य प्रदान कर इन्हें तर्क की कसौटी पर व्यवस्थित किया।
- फिर ऐसा क्यों है कि हमने उदाहरण के लिए शेक्सपीयर पर याकि महान ग्रीक ट्रेजेडियों पर, रिल्के या ब्रेख्त पर रस सिद्धांत या ध्वनि की दृष्टि से कभी व्यापक विचार नहीं किया है?
- भाई, रस सिद्धांत की षास्त्रीयता को गोली मारो, उसकी रूढ़िग्रस्त जकड़बंदी से मुक्त होने का मतलब यह नहीं है कि ' रस ' यानी ' भाव ' यानी ' अनुभूति ' से ही किनारा कर लो ।
- रस सिद्धांत को चुनौती देकर कहा गया कि कविता का नया सोंदर्य बोध अब रस प्रतिमान से नहीं समझा-समझाया जा सकता है क्योंकि रस का आधार है अद्वंद्व, समाहिति,संविद विश्रांति जबकि नई कविता का आधार है द्वंद्व,तनाव,घिराव,संघर्ष,बेचैनी,चित्त की व्याकुलता,बौद्धिक तार्किक स्थिति।
- भरत का रस सिद्धांत है ही बहु आयामी खासकर नाटक के सन्दर्भ मे ही भरत रस की तीन अवस्थाओं का संकेत करते हैं-‘एवं रसाश्च भावाश्च त्रयवस्था नाटके स्मृता: '[ना.शा.7/130] भरत के अनुसार रस प्रेक्षक और नट के बीच स्वयमेव रूपांतरित होता है।
- हिंदी पाठकों के लिए यह जानना रोचक होगा कि तेलुगु में रस सिद्धांत की आधुनिक व्याख्या करते हुए डॉ. जी. वी. सुब्रह् मण्यम् ने यह प्रतिपादित किया है कि धर्मवीर रस सर्वोपरि रस है और रामायण तथा महाभारत दोनों का अंगीरस धर्मवीर ही है.
- ' आधुनिक हिंदी काव्य में रूप विधाएं ', ' रस सिद्धांत और सौंदर्यशास्त्र ', ' आधुनिक साहित्य: मूल्य और मूल्यांकन ', ' आधुनिक साहित्य: रूप और संरचना ', ' समाजवादी साहित्य: विकास की समस्याएं ' और ' पाश्चात्य साहित्य चिंतन ' उनकी प्रमुख कृतियां हैं।
- कविता के नए रस सिद्धांत ' में वह कहते हैं-‘ ऐसे ही बेढंगे रस भरे हैं आज उन कविताओं में भी. भृष्टाचार, शोषण, बेईमानी व विस्थापन के शिकार देश के करोड़ों हताश युवाओं के कुंठित व उद्वेलित मस्तिष्कों की नसों के बढते तनाव की बेचैनी से. '
- नामवर सिंह ने रस सिद्धांत केप्रति शुक्ल जी की ग्रहण और त्याग-दृष्टि का समर्थन किया है और रस केसिद्धांत के दो पक्षों-अर्थमीमांसा और तत्व-~ मीमांसा में भेद करते हुए स्वीकारकिया है कि रस-~ सिद्धांत प्रतिमान के रूप में मान्य हो या न हो-~ अर्थमीमांसाके स्तर पर रस-दृष्टि का उपयोग किया जा सकता है.
- भरत का रस सिद्धांत है ही बहु आयामी खासकर नाटक के सन्दर्भ मे ही भरत रस की तीन अवस्थाओं का संकेत करते हैं-‘ एवं रसाश्च भावाश्च त्रयवस्था नाटके स्मृता: ' [ना. शा.7 / 130] भरत के अनुसार रस प्रेक्षक और नट के बीच स्वयमेव रूपांतरित होता है।