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विष्णुधर्मोत्तर वाक्य

उच्चारण: [ visenudhermotetr ]

उदाहरण वाक्य

  1. ३ ८. २ ३ (कृष्ण के स्वर्गधाम गमन के पश्चात् कृष्ण-पत्नियों की म्लेच्छों से रक्षा करने में अर्जुन के अग्नि-प्रदत्त शरों का असफल होना), विष्णुधर्मोत्तर १. २ १ ३.
  2. भारतीय पंचांग के पांच तत्व इस प्रकार हैं-1. वार: सूर्य सिद्धांत के अनुसार दिन का प्रारंभ अर्धरात्रि से माना जाता है, जबकि विष्णुधर्मोत्तर पुराण, आर्यभट्ट प्रथम, ब्रह्मगुप्त तथा भास्कराचार्य सूर्योदय से दिन का प्रारम्भ मानते हैं।
  3. विष्णुधर्मोत्तर पुराण की कथा है कि इन्द्र वृत्रासुर के मारने से लगी हुई ब्रह्म-हत्या के भय से भयभीत हुआ जब विषतन्तु में छिप गया तो इन्द्रलोक में अराजकता से दुःखी देवताओं ने प्रभु त्रैलोकनाथ की प्रार्थना की, तब भगवान् ने कहा-यजतां सोश्वमेधेन मामेवसुरसत्तमाः ।
  4. १ ८ (मन सहित एकादश इन्द्रियों का कथन), वायु ६ २. ३ ९ (चतुर्थ तामस मन्वन्तर में देव गण), विष्णु १. २२. ७ ३ (विष्णु के आयुध शर के इन्द्रियों का प्रतीक होने का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर ३.
  5. 349) आगे लिखते हैं कि “ The type in a modified form was similar to Baldeva, one of whose aspect is based on a trait of this primitive folk cult ” ज्ञात रहे कि विष्णुधर्मोत्तर पुराण में निर्दिश्ट अनंतनाग का प्रतिमालक्षण, बलराम के प्रतिमालक्षण से भी मेल खाता है।
  6. यह आश्चर्यजनक है कि कृष्ण जन्माष्टमी पर लिखे गये मध्यकालीन ग्रन्थों में भविष्य, भविष्योत्तर, स्कन्द, विष्णुधर्मोत्तर, नारदीय एवं ब्रह्म वैवर्त पुराणों से उद्धरण तो लिये हैं, किन्तु उन्होंने उस भागवत पुराण को अछूता छोड़ रखा है जो पश्चात्कालीन मध्य एवं वर्तमानकालीन वैष्णवों का ' वेद ' माना जाता है।
  7. 8-9) । विष्णुधर्मोत्तर. (1, अध्याय 201-202) में आया है कि शैलूष के पुत्र गन्धर्वो ने सिन्धु के दोनों तटों की भूमि को तहस-नहस किया और राम ने अपने भाई भरत को उन्हें नष्ट करने को भेजा-' जहि शैलूषतनयान् गन्धर्वान्, पापनिश्चयान् ' (1 ।
  8. वायु पुराण [72], ब्रह्माण्ड पुराण [73], पद्म पुराण [74], विष्णुधर्मोत्तर [75] एवं अन्य पुराणों में पितरों के सात प्रकार आये हैं, जिनमें तीन अमूर्तिमान् हैं और चार मूर्तिमान् ; वहाँ पर उनका और उनकी संतति का विशद वर्णन हुआ हैं इन पर हम विचार नहीं करेंगे।
  9. यह ज्ञातव्य है कि कुछ धर्मशास्त्र ग्रन्थों (यथा-विष्णुधर्मोत्तर) ने व्यवस्था दी है कि जो कोई मृतक की सम्पत्ति ले लेता है, उसे उसके लिए श्राद्ध करना चाहिए, और कुछ ने ऐसा कहा है कि जो भी कोई श्राद्ध करने की योग्यता रखता है अथवा श्राद्ध का अधिकारी है, वह मृतक की सम्पत्ति ग्रहण कर सकता है।
  10. इसके बाद विष्णु पुराण का उत्तरभाग प्रारम्भ होता है, जिसमें शौनक आदि के द्वारा आदरपूर्वक पूछे जाने पर सूतजी ने सनातन विष्णुधर्मोत्तर नामसे प्रसिद्ध नाना प्रकार के धर्मों कथायें कही है,अनेकानेक पुण्यव्रत यम नियम धर्मशास्त्र अर्थशास्त्र वेदान्त ज्योतिष वंशवर्णन के प्रकरण स्तोत्र मन्त्र तथा सब लोगों का उपकार करने वाली नाना प्रकार की विद्यायें सुनायी गयीं है,यह विष्णुपुराण है,जिसमें सब शास्त्रों के सिद्धान्त का संग्रह हुआ है।
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