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शकेब जलाली वाक्य

उच्चारण: [ shekeb jelaali ]

उदाहरण वाक्य

  1. लौ दे उठे वो हर्फ़-ए-तलब सोच रहे हैं / शकेब जलाली जहाँ तलक भी ये सेहरा दिखाई देता है / शकेब जलाली उतरीं अजीब रोशनियाँ रात ख़्वाब में / शकेब जलाली वहाँ की रोशनियों ने भी ज़ुल्म ढाए बहुत / शकेब जलाली हमजिंस अगर मिले न कोई आसमान पर / शकेब जलाली तूने कहा न था कि मैं कश्ती पे बोझ हूँ / शकेब जलाली
  2. लौ दे उठे वो हर्फ़-ए-तलब सोच रहे हैं / शकेब जलाली जहाँ तलक भी ये सेहरा दिखाई देता है / शकेब जलाली उतरीं अजीब रोशनियाँ रात ख़्वाब में / शकेब जलाली वहाँ की रोशनियों ने भी ज़ुल्म ढाए बहुत / शकेब जलाली हमजिंस अगर मिले न कोई आसमान पर / शकेब जलाली तूने कहा न था कि मैं कश्ती पे बोझ हूँ / शकेब जलाली
  3. लौ दे उठे वो हर्फ़-ए-तलब सोच रहे हैं / शकेब जलाली जहाँ तलक भी ये सेहरा दिखाई देता है / शकेब जलाली उतरीं अजीब रोशनियाँ रात ख़्वाब में / शकेब जलाली वहाँ की रोशनियों ने भी ज़ुल्म ढाए बहुत / शकेब जलाली हमजिंस अगर मिले न कोई आसमान पर / शकेब जलाली तूने कहा न था कि मैं कश्ती पे बोझ हूँ / शकेब जलाली
  4. लौ दे उठे वो हर्फ़-ए-तलब सोच रहे हैं / शकेब जलाली जहाँ तलक भी ये सेहरा दिखाई देता है / शकेब जलाली उतरीं अजीब रोशनियाँ रात ख़्वाब में / शकेब जलाली वहाँ की रोशनियों ने भी ज़ुल्म ढाए बहुत / शकेब जलाली हमजिंस अगर मिले न कोई आसमान पर / शकेब जलाली तूने कहा न था कि मैं कश्ती पे बोझ हूँ / शकेब जलाली
  5. लौ दे उठे वो हर्फ़-ए-तलब सोच रहे हैं / शकेब जलाली जहाँ तलक भी ये सेहरा दिखाई देता है / शकेब जलाली उतरीं अजीब रोशनियाँ रात ख़्वाब में / शकेब जलाली वहाँ की रोशनियों ने भी ज़ुल्म ढाए बहुत / शकेब जलाली हमजिंस अगर मिले न कोई आसमान पर / शकेब जलाली तूने कहा न था कि मैं कश्ती पे बोझ हूँ / शकेब जलाली
  6. कविता की धारा में फिर भी अलग से छिटके क् यों दिखाई देते हैं, पूछने पर वे शकेब जलाली का यह शेर गुनगुना देते हैं: '' शकेब अपनी तआरुफ के लिए यह बात काफी है / हम उससे बच के चलते हैं जो रस् ता आम हो जा ए. '' लिहाजा मंडलोई की कविता धूप में जलती हुई परछाईं तक की खबर लेती है.
  7. खामोशी बोल उठे, हर नज़र पैगाम हो जाये ये सन्नाटा अगर हद से बढ़े, कोहराम हो जाये सितारे मशालें ले कर मुझे भी ढूंडने निकलें मैं रास्ता भूल जाऊं, जंगलों में शाम हो जाये मैं वो आदम-गजीदा* हूँ जो तन्हाई के सहरा मैं खुद अपनी चाप सुन कर लरज़ा-ब-अन्दाम हो जाये [*आदम-गजीदा=आदमीयों का डसा हुआ] मिसाल ऎसी है इस दौर-ए-खिरद के होश्मंदों की न हो दामन में ज़र्रा और सहरा नाम हो जाये शकेब अपने तार्रुफ़ के लिए ये बात काफी है हम उस से बच के चलते हैं जो रास्ता आम हो जाये शकेब जलाली
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