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शुक्रनीति वाक्य

उच्चारण: [ shukerniti ]

उदाहरण वाक्य

  1. “ कामसूत्र ”, “ शुक्रनीति ”, जैन ग्रंथ “ प्रबंधकोश ”, “ कलाविलास ”, “ ललितविस्तर ” इत्यादि सभी भारतीय ग्रंथों में कला का वर्णन प्राप्त होता है।
  2. कार्मदक नीतिसार (द्वितीय 15) (शुक्रनीति, प्रथम, 14) और महाभारत (शांतिदृ, 15-8) की परिभाषा के अनुसार अपराधों का दमन (दम) ही दंड अथवा “ नीति ” कहलाता है।
  3. वैदिक साहित्य, महाभारत, बृहत्संहिता, निघंटु, सुश्रुत, अग्निपुराण, मार्कंडेयपुराण, शुक्रनीति, कौटिल्य अर्थशास्त्र, शारंगधर पद्धति, वात्स्यायन कामसूत्र, ललित विस्तर, भरत नाट्यशास्त्र, अमरकोश इत्यादि में नानाविध अंगरागों और गंध-द्रव्यों का रचनात्मक और प्रयोगात्मक वर्णन पाया जाता है।
  4. दुर्भाग्य का चरमोत्कर्ष यह है कि यह दशा उस राष्ट्र की है जिसने सदियों तक नीति के गंभीर अन्वेषण से नीति को जीवन में और जीवन को नीति में समाकलित किया, नीति दर्शन पर जहां शुक्रनीति, विदुरनीति, कणकनीति व चाणक्यनीति जैसे अमर ग्रन्थों की रचना हुई।
  5. वेद, मनुस्मृति के सप्तम, अष्टम, नवम अध्याय में और शुक्रनीति तथा विदुर प्रजागर और महाभारत शांतिपर्व के राजधर्म और आपद्घर्म आदि पुस्तकों में देखकर पूर्ण राजनीति को धारण करके माण्डलिक अथवा सार्वभौम चक्रवती राज्य करें और यही समझें कि वयं प्रजापति: प्रजा अभूम यह यजुर्वेद का वचन है।
  6. आगे चलकर महाभारत, विष्णु पुराण, मत्स्य पुराण, शुक्रनीति, वृहत् संहिता, पाराशर, चरक, सुश्रुत, उदयन आदि द्वारा वनस्पति, उसकी उत्पत्ति, उसके अंग, क्रिया, उनके विभिन्न प्रकार, उपयोग आदि का विस्तार से वर्णन किया गया, जिसके कुछ उदाहरण हम निम्न संदर्भों में देख सकते हैं।
  7. कहने का आशय यह है कि पुर के हितकारी की धारणा शुक्रनीति के अनुसार, सर्वपक्षीय श्रेष्ठता और कार्य निपुणता के अर्थों में प्रारंभ अवश्य हुई पर बाद में पारलौकिक गतिविधियों और जन्माधारित भूमिकाओं तक सिमट कर रह गई! एक गतिशील धारणा के जड़ता में परिवर्तित होते जाने को पुरोहित शब्द से बेहतर कौन जानता है?
  8. वास्तुू शास्त्र के प्राचीन ग्रंथ तो नहीं पढे किन्तु इत्तेफाकन शुक्रनीति एक बहुत पुराना गं्रथ था उसे पढा था किन्तु यह मान कर कि न जाने कहां कहां रहना है, कभी सरकारी कभी किराये के मकान में तो क्या मतलव कि भूमि ऐसी होनी चाहिये पास में कुआ तालाव सार्वजनिक स्थल, स्कूल नहीं होना चाािहये ।
  9. सदन में बैठ के नेता खुद को किसान परिवार का बताके उत्तेजक भाषण तो दे देते है पर उन लोगो के लिए कुछ नही करते! कर (tax) के लिए भी शुक्रनीति में उल्लिखित है कि कोष का जो धन भोग विलास के लिए प्रयोग किया जाता है वह “ दुःख ” का कारण बन जाता है ;
  10. वैसे ही मेरा सहपाठी मित्र विष्णु शर्मा नामक ब्राह्मण जो शुक्रनीति और चैसठों कला से ज्योतिषशास्त्र में बड़ा प्रवीण है, उसे मैंने पहले ही योगी बनाकर नन्दवध की प्रतिज्ञा के अनन्तर ही कुसुमपुर में भेज दिया है, वह वहाँ नन्द के मंत्रियों से मित्रता करके, विशेष करके राक्षस का अपने पर बड़ा विश्वास बढ़ाकर सब काम सिद्ध करेगा, इससे मेरा सब काम बन गया है परन्तु चन्द्रगुप्त सब राज्य का भार मेरे ही ऊपर रखकर सुख करता है।
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