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श्रौतसूत्र वाक्य

उच्चारण: [ sherautesuter ]

उदाहरण वाक्य

  1. २-कल्प जो आश्वालयन, आपस्तम्ब, बौधायन, और कात्यायन, आदि ॠषियों के बनाये श्रौतसूत्र, गॄहसूत्र, धर्मसूत्र हैं, जिनमे यज्ञ के प्रयोग, मन्त्रों के विनियोग की विधि है।
  2. १) के भाष्य में, भट्ट भास्कर तैत्तरीय आरण्यक (४. १. १) के भाष्य में और कात्यायन गर्ग श्रौतसूत्र (३. २. ९) की व्याख्या में लेते हैं।
  3. १, ताण्ड्य ब्राह्मण १ ३. ३. २ ४, तैत्तिरीय आरण्यक ४. १. १, कात्यायन श्रौतसूत्र ३. २. ८, गृहसूत्र २. १. १ ३, निरुक्त ३.
  4. काम्यायन श्रौतसूत्र में प्रातः कालीन यज्ञ में अतिग्राह्य को ग्रहण करने का उल्लेख मिलता है-प्रातः सवनेऽतिग्राह्यान्गृहीत्वा (का. श्रौ.14.1.26) धु्रवसदमिति प्रतिमन्त्रमतिग्राह्यगृहीत्वा (का. श्रौ.14.2.1 वीर्याय) इत्यतिग्राह्यं वा षोडशिनं वावेक्षते (बौ. श्रौ.14.8)
  5. साहित्य की आनुपूर्वी-इस सन्दर्भ में भी ब्लूमफील्ड की यह अवधारणा, कि अथर्व-साहित्य में ब्राह्मण, श्रौतसूत्र और गृह्यसूत्र के संकलन का कालगत सम्बन्ध उलट जाता है तथा कौशिक-गृह्यसूत्र वैतान-श्रौतसूत्र से पहले रचा गया था और वैतान-श्रौतसूत्र गोपथ-ब्राह्मण से पहले *, अग्राह्य प्रतीत होती है।
  6. डॉ. उमेश चन्द्र पाण्डेय ने धर्मसूत्रों के टीकाकारों के आधार पर ऐसा संकेत भी दिया है कि धर्मसूत्र, श्रौत तथा गृह्यसूत्रों से पूर्व विद्यमान थे, किन्तु डॉ. पाण्डेय ने इस तथ्य को अस्वीकार करते हुए प्रतिपादन किया है कि धर्मसूत्र श्रौतसूत्र तथा गृह्यसूत्रों के बाद की रचनाएँ हैं।
  7. अवश्वलायन [13], लाट्यायन[14] एवं कात्यायन[15] के श्रौतसूत्र ताण्ड्य ब्राह्मण एवं अन्य ब्राह्मणों का अनुसरण करते हैं और कई ऐसे तीर्थों का वर्णन करते हैं जहाँ सारस्वत सत्रों का सम्पादन हुआ था, यथा प्लक्ष प्रस्त्रवर्ण (जहाँ से सरस्वती निकलती है), सरस्वती का वैतन्धव-ह्रद; कुरुक्षेत्र में परीण का स्थल, कारपचव देश में बहती यमुना एवं त्रिप्लक्षावहरण का देश।
  8. अवश्वलायन [9], लाट्यायन [10] एवं कात्यायन [11] के श्रौतसूत्र ताण्ड्य ब्राह्मण एवं अन्य ब्राह्मणों का अनुसरण करते हैं और कई ऐसे तीर्थों का वर्णन करते हैं जहाँ सारस्वत सत्रों का सम्पादन हुआ था, यथा प्लक्ष प्रस्त्रवर्ण (जहाँ से सरस्वती निकलती है), सरस्वती का वैतन्धव-ह्रद ; कुरुक्षेत्र में परीण का स्थल, कारपचव देश में बहती यमुना एवं त्रिप्लक्षावहरण का देश।
  9. पुस्तक में आरंभ में वेद, वेदाङ्ग, ब्राह्मण ग्रंथों के परिचय के साथ-साथ कल्पसूत्रों अर्थात श्रौतसूत्र (कर्मकांड को विकसित करनेवाला सूत्र), गृह्यसूत्र (जन्म से लेकर मृत्यु तक के समस्त संस्कारों / अनुष्ठाणों से संबंधित सूत्र), धर्मसूत्र (विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक कर्तव्यों, आश्रमों, विवाह, उत्तराधिकारी से संबंधित सूत्र) तथा शुल्वसूत्र (वेदियों का नापना, उनके लिए स्थान चुनना आदि से संबंधित सूत् र.
  10. balloon title = “ बौधायन धर्मसूत्र 1. 1.7 तथा 2.2.17 ” style = color: blue > * / balloon > सामवेद के श्रौतसूत्र लाट्यायन balloon title = “ श्रौतसूत्र लाट्यायन, 1.3.3 तथा 1.4.17 ” style = color: blue > * / balloon > एवं द्राह्यायण balloon title = “ द्राह्यायण, 1.4.17 तथा 9.3.15 ” style = color: blue > * / balloon > भी गौतम को उद्धृत करते हैं।
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