सलवात वाक्य
उच्चारण: [ selvaat ]
उदाहरण वाक्य
- इमाम हसन अलैहिस्सलाम जब भी पैग़म्बरे इस्लाम (स) के बारे में बात करते थे तो बात आरंभ करते से पहले उनपर सलवात भेजते और अच्छी विशेषताओं से उनको याद करते थे।
- जैसे पहले अल्लाह की तारीफ़ करे फिर उसकी मखसूस नेअमतों जैसे माअरिफ़त, इस्लाम, अक़्ल, इल्म, विलायत, क़ुर्आन, आज़ादी व फ़हम वगैरह का शुक्र करते हुए मुहम्मद वा आलि मुहम्मद पर सलवात पढ़े।
- (बिहारुल अनवार जि 90, स 313, अध्याय 17) इमाम जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम का इरशाद हैः لا یزال الدعاء محجوبا ً عن السماء حتی یصلی علی النبی وآلہ जब तक नबी और आले नबी पर सलवात न भेजी जाए दुआ आसमान तक नहीं पहुँचती।
- 482 हाइज़ के लिए मुस्तहब है कि नमाज़ के वक़्त अपने आपको ख़ून से पाक रखे और जो रूई या कपड़े का टुकड़ा अपनी शर्मगाह पर लगा रखा हो उसे बदले, वुज़ू करे, अगर वुज़ू न कर सकती हो तो तयम्मुम करे और नमाज़ की जगह पर क़िबला रुख़ बैठ कर दुआ, ज़िक्र व सलवात में मशग़ूल हो जाये।
- 360-अगर परवरदिगार की बारगाह में तुम्हारी कोई हाजत हो तो उसकी तलब का आग़ाज़ रसूले अकरम (स 0) पर सलवात से करो और उसके बाद अपनी हाजत तलब करो के परवरदिगार इस बात से बालातर है के उससे दो बातों का सवाल किया जाए और वह एक को पूरा कर दे और एक को नज़रअन्दाज़ कर दे।
- हमाम इस मुख़्तसर बयान से मुतमईन न हुए तो हज़रत ने हम्द व सनाए परवरदिगार और सलवात व सलाम के बाद इरषाद फ़रमाया-अम्माबाद! परवरदिगार ने तमाम मख़लूक़ात को इस आलम में पैदा किया है के वह उनकी इताअत से मुस्तग़नी और उनकी नाफ़रमानी से महफ़ूज़ था, न उसे किसी नाफ़रमान की मासीयत नुक़सान पहुंचा सकती थी और न किसी इताअत गुज़ार की इताअत फ़ायदा दे सकती थी।
- ' ' सरकारे दो आलम (स 0) ने एक तरफ़ नमाज़ को इस्लाम का सुतून क़रार दिया है और दूसरी तरफ़ अहलेबैत (अ 0) के बारे में फ़रमाया है के जो मुझ पर और इन पर सलवात न पढ़े उसकी नमाज़ बातिल और बेकार है, जिसका खुला हुआ मतलब यह है के नमाज़ इस्लाम का सुतून है और मोहब्बते अहलेबैत (अ 0) नमाज़ का सुतूने अकबर है।
- (((यह सही है के रसूले अकरम (स 0) हमारी सलवात और दुआए रहमत के मोहताज नहीं हैं लेकिन इसके यह मानी हरगिज़ नहीं है के हम अपने अदाए ‘ ाुक्र से ग़ाफ़िल हो जाएं और उनकी तरफ़ से मिलने वाली नेमते हिदायत का किसी ‘ ाक्ल में कोई बदला न दें वरना परवरदिगार भी हमारी इबादतों का मोहताज नहीं है तो हर इन्सान इबादतों को नज़र अन्दाज़ करके चैन से सो जाए।
- (((यह इस अम्र की तरफ़ इशारा है के फ़िक़ की ज़रूरत सिर्फ़ सलवात व सयाम के लिये नहीं है बल्कि इसकी ज़रूरत ज़िन्दगी के हर ‘ ाोबे में है ताके इन्सान बुराइयों से महफ़ूज़ रह सके और लुक़्मए हलाल पर ज़िन्दगी गुज़ार सके वरना फ़िक़ के बग़ैर तिजारत करने में भी सूद का अन्देशा है और सूद से बदतर इस्लाम में कोई माल नहीं है जिसका एक पैसा भी हलाल नहीं कहा गया है।
- (बिहारुल अनवार जि 90, स 317, अध्याय 17) 8. नबी और आले नबी पर दुरूद और सलाम अल्लाह की हम्द व प्रशंसा और अल्लाह की याद के बाद पैग़म्बरे अकरम स 0 और उनकी आले पाक पर दुरूद और सलाम भेजना चाहिए, पैग़म्बरे अकरम स 0 का इरशाद हैः صلاتکم علی ّ اجابۃ لدعائکم وزکاۃ لاعمالکم मुझ पर सलवात भेजना तुम्हारी दुआओं की क़बूलियत और आमाल की पाकीज़गी का कारण है।