साहित्यालोचन वाक्य
उच्चारण: [ saahiteyaalochen ]
उदाहरण वाक्य
- यही आंदोलन इटली में भविष्यद्वाद (फ़्यूच्यूरिस्ट) और क्रांतिपूर्व रूप में “क्यूबोफ़्यूचरिज़म” कहलाया इस शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग फ्रांसीसी चित्रकार हेव ने 1901 में किया, इसे साहित्यालोचन में प्रयुक्त किया आस्ट्रिया के लेखक हेरमान बाहर ने 1914ई.
- यही आंदोलन इटली में भविष्यद्वाद (फ़्यूच्यूरिस्ट) और क्रांतिपूर्व रूप में “क्यूबोफ़्यूचरिज़म” कहलाया इस शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग फ्रांसीसी चित्रकार हेव ने 1901 में किया, इसे साहित्यालोचन में प्रयुक्त किया आस्ट्रिया के लेखक हेरमान बाहर ने 1914ई.
- ' तारसप्तक' की भूमिका हिन्दी-साहित्य में नवीन अवधारणाओं का घोषणा-पत्र कही जा सकती है जिसने परम्परा, आधुनिकता, प्रयोग-प्रगति, काव्य-सत्य, कवि का सामाजिक दायित्व, काव्य-शिल्प, काव्य-भाषा, छन्द आदि की तमाम बहसों को पहली बार उठाकर साहित्यालोचन को मौलिक स्वरूप दिया।
- खैर इससे साहित्यालोचन में पाठधर्मी प्रयोगधर्मिता तो बढ़ती ही है, साथ में विरोधाभास, अस्थायित्व और संभ्रम भी. आलोचना को रचना मानकर चलना अब भी हिन्दी सृजनशीलता के लिए सामान्य अनुभव का विषय नहीं है.
- विचारधाराओं के दुनियावी फैलाव का प्रभाव, भारतीय मनःस्थितियों के ऊपर और खास तौर पर हिन्दी साहित्यालोचन पर तब पड़ता है जब वार्ताओं और बहसों के तौर पर उनकी मौजूदगी, एक नौसटैल्जिक कार्निवल की तरह रह जाती है.
- दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी के प्रोफेसर और आलोचक गोपेश्वर सिंह के संपादन में आई पुस्तक ‘ नलिन विलोचन शर्मा-संकलित निबंध ' से गुजरते हुए नलिन विलोचन शर्मा की ऐसे कई साहित्यालोचन और उसकी सैद्धांतिकता से रूबरू हुआ जा सकता है।
- पुस्तकों और कवियों की आलोचना के अतिरिक्त पाश्चात्य काव्यमीमांसा को लेकर भी बहुत से लेख और पुस्तकें इस काल में लिखी गईं, जैसे, बाबू श्यामसुंदरदास कृत ' साहित्यालोचन ', श्री पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी कृत ' विश्वसाहित्य ' ।
- किन्तु साहित्यालोचन (Literary Criticism) के सवाल वहाँ भी ना तो व्यावसायिक विनिमय के सवाल हैं न ही मॉस कल्चर के प्रतिरूप के. वस्तुतः साहित्यालोचन एक प्रतिपक्ष है जो रचना के सार्वजनिक जीवन में जनतंत्र की तरह शामिल होता है.
- किन्तु साहित्यालोचन (Literary Criticism) के सवाल वहाँ भी ना तो व्यावसायिक विनिमय के सवाल हैं न ही मॉस कल्चर के प्रतिरूप के. वस्तुतः साहित्यालोचन एक प्रतिपक्ष है जो रचना के सार्वजनिक जीवन में जनतंत्र की तरह शामिल होता है.
- इनकी प्रमुख पुस्तकें हैं-हिंदी कोविद रत्नमाला भाग 1, 2 (1909-1914), साहित्यालोचन (1922), भाषाविज्ञान (1923), हिंदी भाषा और साहित्य (1930) रूपकहस्य (1931), भाषारहस्य भाग 1 (1935), हिंदी के निर्माता भाग 1 और 2 (1940-41), मेरी आत्मकहानी (1941), कबीर ग्रंथावली (1928), साहित्यिक लेख (1945)।