हंसराज रहबर वाक्य
उच्चारण: [ henseraaj rhebr ]
उदाहरण वाक्य
- विभूति नारायण राय जिस वक् त हंसराज रहबर के किस् से के हवाले से अघोषित आपातकाल को अतिरंजना ठहरा रहे थे, तो कॉफी हाउस का नाम आते ही बिष् ट जी का चेहरा बिगड़ गया।
- फणीश्वरनाथ रेणु, पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटलबिहारी वाजपेयी जी, हंसराज रहबर, विश्वनाथ प्रसाद तिवारी, राजेन्द्र अनुरागी, श्रीराम वर्मा एवं रामदरश मिश्र की कविताओं में परिवर्तन की लहर का स्वर सुनाई देता है।
- हंसराज रहबर के शब्दों में-“ पूरन मुद्गल ने अपनी लघुकथाओं में जीवन की साधारण घटनाओं को इस तरह उकेरा है कि वर्तमान समाज का कोई न कोई सत्य नजरों के सामने आकर साकार हो जाता है।
- हंसराज रहबर तबीयत में न जाने ख़ाम ऐसी कौन सी शै है रमेश तैलंग किसी को ज़िंदगी में जानना आसाँ नहीं होता जहाँ उम्मीद थी ज़्यादा वहीं से खाली हाथ आए मेरे जज़्बात में जब भी कभी थोड़ा उबाल आया
- उनके बारे में विद्रोही लेखक के तौर पर मशहूर हुए दिवंगत हंसराज रहबर के इस शेर के हवाले से कहा जा सकता है कि-क्या हौसले हैं दिल में रहबर न पूछ, है सामने पहाड़ ढहाने को जी करे।
- मुख्य तौर पर अमृता प्रीतम, नेशनल बुक ट्रस्ट, प्रथम बुक्स, अजीत कौर, कुसुम अंसल, सिम्मी हर्षिता, डा. संगत सिंह, देविंदर सिंह, डा. हरबंस सिंह चावला, कमल कुमार और हंसराज रहबर की पुस्तकों का अनुवाद।
- बनारसीदास चतुर्वेदी, मन्मथनाथ गुप्त, यशपाल, शिव वर्मा, भगवानदास माहौर, जितेन्द्रनाथ सान्याल, सोहनसिंह जोश, अजय घोष, हंसराज रहबर, वीरेन्द्र सिं धु, विष्णु प्रभाकर, श्री राजयम सिन्हा, विष्णुचन्द्र शर्मा, सुरेश सलिल के अत्यन्त सघन और महत्वपूर्ण प्रयास हैं ।
- वह दौर अब इतिहास की बात है जब रामविलास शर्मा से घोर असहमतियों के बीच शिवदान सिंह चौहान, अमृत राय, प्रकाश चंद्र गुप्त, हंसराज रहबर आदि उनके समालोचक में लिखते थे और रामविलास शर्मा, एक संपादक के रूप में, अज्ञेय को भी अपनी पत्रिाका में लिखने को आमंत्रिात करते थे।
- आज इन पीले सफ़ों पर दिवगंत हो चुके विष्णु प्रभाकर, पत्रकार आशा कुंदन, कन्हैया लाल नंदन, निर्मल वर्मा, गुमशुदा स्वदेश दीपक, हंसराज रहबर, हमारे शहर हिसार के प्रसिद्ध साहित्य प्रेमी बलदेव तायल, के फ़ोन नंबर देख कर जीवन की विश्वसनीयता पर एक बार फिर संदेह उपजने में तनिक भी देर नहीं लगी।
- इन बहसों के स्रोत के रूप में लोग शिवदान जी की “ साहित्य की समस्याएं ” तथा “ प्रगतिवाद ” नामक दो पुस्तकें, रामविलास जी की “ प्रगतिशील साहित्य की समस्याएं ”, हंसराज रहबर की “ प्रगतिवाद: पुनर्मूल्यांकन ”, अमॄतराय की “ साहित्य में संयुक्त मोर्चा ” के साथ-साथ अनेक प्रगतिशील लेखकों द्वारा समय-समय पर की गई टिप्पणियों को लेते थे.