हलायुध वाक्य
उच्चारण: [ helaayudh ]
उदाहरण वाक्य
- गौड़ या लखनौती हिंदू राजसत्ता के उत्कर्षकाल में संस्कृत विद्या के केंद्र के रूप में विख्यात थी और महाकवि जयदेव, कविवर गोवर्धनाचार्य तथा धोयी, व्याकरणचार्य उमापतिघर और शब्दकोशकार हलायुध इन सभी विद्वानों का संबंध इस प्रसिद्ध नगरी से था।
- अमरकोश के पूर्व-जैसे कात्य का “नाममाला”, भागुरि का “त्रिकांड”, अमरदत्त का “अमरमाला” या वाचस्पति का “शब्दार्णव” आदि-एवं बाद के-पुरुषोत्तम देव के “हारावली” तथा “त्रिकांडकोश”, हलायुध का “अभिधान रत्नमाला”, यादवप्रकाश का “वैजंती” आदि-कोश एकभाषिक ही हैं।
- विश्व के प्रायः समस्त विद्वान इस बात से सहमत हैं कि बौधायन, मानव, आपस्तम्ब, कात्यायन, पाणिनि, आर्यभट, वराहमिहिर, भास्कर १, ब्रह्मगुप्त, पृथूदक, हलायुध, आर्यभट २ आदि भारत प्राचीन विद्वानों के महत्वपूर्ण देन को संसार कभी भी नहीं भुला सकता।
- एक अन्य प्राचीन ग्रंथकार हलायुध ने अपनी कृति ‘ ब्राह्मण सर्वस्व ‘ में याज्ञवल्क्य को उद्धृत करते हुए लिखा है कि गायत्री मंत्र के शुरू में स्थित शब्द ‘ तत् ‘ के स्थान पर ‘ तम् ‘ होना चाहिए, क्योंकि ‘ तत् ‘ का मंत्र के किसी भी शब्द के साथ अन्वय नहीं होता।
- परन्तु 8 वी सदी में केदारभट्ट ने पिंगल के छन्दःशास्त्र पर कार्य किया और इस पहेली को सुलाझा लिया इनके ग्रन्थ का नाम वृतरत्नाकर है इसके पश्चात त्रिविक्रम द्वारा १ २ वीं शती में रचित तात्पर्यटीका तथा हलायुध द्वारा १ ३ वीं शती में रचित मृतसंजीवनी में उपरोक्त सूत्र को और भी बारीकी से प्रस्तुत किया गया ।
- ग्यारहवीं शताब्दी के पिंगलच्छंदःसूत्र के संस्कृत व्याख्याकार भट्ट हलायुध ने इस सूत्र की व्याख्या करते हुए ‘ निचृत् गायत्री ‘ का स्पष्ट उल्लेख किया है और लिखा हैः चतुर्विंशत्यक्षरा गायत्री एकेनाक्षरेण न्यूनेन सा ‘ निचृत् ‘ इति विशेषसंज्ञां लभते. एकेनाधिकेन ‘ भुरिक ‘ इति एवमुष्णिगादिष्वपि द्रष्टव्यम्.-पिंगलच्छंदःसूत्र, वेणीराम शर्मा गौड़ का संस्करण, 1943 ई.
- क्या एसा ही कोई प्रयास तो बस्तर शासित नलों नें नहीं किया तथा अपनी आरंभिक अवस्था में वे आंचलिक व आदिवासी ही रहे हों? यह संभावना डॉ. हीरालाल शुक्ल भी व्यक्त करते हैं कि नल प्रकृतिपूजक वनवासी रहे होंगे? डॉ. शुक्ल का कथन है कि नल तृणविशेष (शादूलं हरितं प्रोक्तं नड्वलं नलसंयुक्तम-हलायुध कोष में वर्णित) अथवा वृक्षविशेष (नल: पोटगल: शून्यमध्यश्च छमनस्थता।
- ' बलराम या संकर्षण, श्री कृष्ण के बड़े भ्राता हैं, तथा वे देवकी की सातवी संतान हैं, जिन्हें गर्भ अवस्था मैं ही रोहिणी के गर्भ से बदल दिया गया | उनको शेषनाग का अवतार माना जाता है, तथा कुछ पुराणों के अनुसार वे श्री विष्णु के अवतार भी माने गए हैं | बलभद्र या बलराम, हलधर, हलायुध, संकर्षण आदि इनके अनेक नाम हैं | बलभद्र के सगे सात भाई और एक बहन सुभद्रा थी | इनका ब्याह रेवत की कन्या रेवती से हुआ था...