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अहम् ब्रह्मास्मि वाक्य

उच्चारण: [ ahem berhemaasemi ]

उदाहरण वाक्य

  1. तथा अपनी थोथी बुद्धि एवं विनाश क़ी तरफ ले जाने वाली विषाक्त बौद्धिक तर्क के सहारे बिना “ ब्रह्म ” को जाने “ अहम् ब्रह्मास्मि ” का दावा ठोकते जा रहे है.
  2. क्या ये उस समाज की अपनी सोच को कमतरी से आंकना नहीं हुआ? या क्या ये खुद के बारे में ' अहम् ब्रह्मास्मि ' जैसी कोई राय बनाने वाली बात नहीं है?
  3. अविद्या की अवस्था में ही उपास्य उपासक आदि सब व्यवहार हैं और जब जीव अविद्या से रहित होकर अहम् ब्रह्मास्मि अर्थात में ब्रह्मा हूँ, इस अवस्था को पहुँच जाता हैं तो जीव का जीवपन नष्ट हो जाता हैं.
  4. ,,, जबकि उन्होंने कहा था, “ अहम् ब्रह्मास्मि ”, अथवा, “ शिवोहम / तत त्वम् असी ”, यानी ' मैं सृष्टि-कर्ता हूँ ', अथवा ' हम सभी शिव हैं (यानि अजन्मी और अनंत आत्माएं हैं ':)...
  5. फिर भी कुछ आवश्यक कागजात के लिए यह करना भी जरुरी था सो पहुंचा पहाड़गंज ठाणे में, परिचय देने के लिए कुछ भी न था, अहम् ब्रह्मास्मि के आधार पर पुलिस के सवालों से जूझते हुए मैंने अपनी ओपचारिकता पूरी कर के दूसरी ट्रेन से दोपहर १.
  6. अहम् ब्रह्मास्मि-कविता Tuesday, November 3, 2009शामे अवध हो या सुबहे बनारस पूनम का चन्दा हो चाहे अमावस अली की गली या बली का पुरम हो निराकार हो या सगुण का मरम हो हो मज़हब रिलीजन, मत या धरम हो मैं फल की न सोचूँ तो सच्चा करम हो Bahut sundar!!
  7. वह फिल्म थी बाला की ' नान कदवुल ' (अहम् ब्रह्मास्मि), दरअसल उस फिल्म के माध्यम से यह संकेत मिल गया था कि यह फिल्मकार अब तमिल फिल्म इंडस्ट्री से आगे निकल चुका है-आखिर उस फिल्म में हिंदी ही नहीं संस्कृत में भी गीत और संवाद थे. इस राह पर '' परदेसी '' उनका अगला कदम है-' अवन इवन ' के बाद कोर्स करेक्शन.
  8. अपना स्व अपनी सोच अपना आकलन.... यानि ' मैं ' इतना शक्तिशाली होता है कि हर व्यक्ति बाद्शाहियत दिखाने लगता है, अपने द्वारा खिंची गई लकीर को लक्षण रेखा मानता है, उल्लंघन किया तो आपका सर्टिफिकेट बेकार! अपने आईने में अधिकांश लोग जीवन में कभी गलत नहीं होते और सोचते हैं ' अहम् ब्रह्मास्मि ', कृष्ण क्या गीता लिखेंगे, सबके सब ग्रन्थ की रचना में लग जाते हैं और शारीरिक भंगिमा हिकारत वाली हो जाती है.
  9. अहम् ब्रह्मास्मि-ब्रह्म सत्यम जगत मिथ्या, सरमद [1659 AD] कहते हैं-ला इलाही इल अल्लाह, मंसूर [857-922 AD] कहते हैं-अनल हक और बुद्ध [556-486 BC] कहते हैं-यह कहना की परमात्मा है, कुछ कठिन है क्यों की परमात्मा हो रहा है-ऐसे परम तुल्य लोग जो कुछ भी कहे हैं उनके पीछे उनका अपना-अपना संसार का अनुभव है, यों ही नहीं बोला है ।
  10. ध्वनि, बीज मन्त्र ॐ का श्रेष्ठतम स्वरुप, ' गंगाधर शिव ' / वसुधा)... और ' हम ' वसुधा के परिवार के सदस्य, सभी ' मिटटी के माधो ', द्वैतवाद / अनंत्वाद के कारण कस्तूरी मृग समान भटक रहे स्वयं को, शिव-शक्ति रुपी आत्मा को, पहचानने हेतु...:)... मतलब तो परमात्मा, परमानंद, सद्चिदानंद, आदि योगेश्वर विष्णु / शिव को अपने भीतर ही देख पाना है!!!??? सिद्ध पुरुष कह गए, “ अहम् ब्रह्मास्मि ”!
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