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उपशम वाक्य

उच्चारण: [ upeshem ]
"उपशम" अंग्रेज़ी में  

उदाहरण वाक्य

  1. इसमें रोगों के सामान्य कारणओं की चर्चामिलती है कि निदान पूर्व रूप अर्थात् रोग का स्वरुप उपशम और सम्प्रति इनपाँचो के द्वारा रोगों का विज्ञान अर्थात् विशेष रूप से भली भांति ज्ञानप्राप्त करना होता है.
  2. वैराग्यप्रकरण (३३ सर्ग), मुमुक्षु व्यव्हार प्रकरण (२० सर्ग), उत्पत्ति प्रकरण (१२२ सर्ग), स्थिति प्रकरण (६२ सर्ग), उपशम प्रकरण (९३ सर्ग) तथा निर्वाण प्रकरण (पूर्वार्ध १२८ सर्ग और उत्तरार्ध २१६ सर्ग), श्लोकों की संख्या २७६८७ है।
  3. आवास और शहरी गरीबी उपशम मंत्री के रूप में कुमारी शैलजा ने भारत में तेजी से हो रहे शहरीकरण और नगरीकरण के लिए अनुकूल माहौल बनाने और आवासों के प्रभावी वितरण तथा संबंधित आधारभूत सुविधाओं के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।
  4. ' पोट्ठपाद के यह पूछने पर कि किसलिए भंते, भगवान ने इसे अव्याकृत कहा है? तथागत नेबतलाया कि' इसलिए कि ये प्रश्न न तो अर्थयुक्त हैं, न धर्मयुक्त, न आदि ब्रह्मचर्यके उपयुक्त, न निर्वेद (वैराग्य) के लिए, न निरोध के लिए, न उपशम के लिए.
  5. सभी तीव्र रोग जैसे हैजा, ज्वर, चेचक आदि हमारे मल से भरे शरीर से, शरीर की जीवनीशक्ति द्वारा, मल को अधिक वेग के साथ निकाल फेंकने में शीघ्रता करते हैं, उसे हम रोगों का तीव्र या तीव्र उपशम संकट कहते हैं।
  6. मामले के तथ्य संक्षेप में इसप्रकार है कि निगरानीकर्तागण ने विपक्षीगण राजेश प्रसाद पुत्र मारकण्डे मिश्र तथा विमल कुमार पुत्र भगोती प्रसार तिवारी निवासीगण ग्राम दुबहा परगना व तहसील बारा जिला इलाहाबाद के विरूद्ध मूलवाद सं0-2127 / 06 अवर न्यायालय में स्थायी निषेधज्ञा के उपशम हेतु योजित किया।
  7. जो लोग चौथे अध्याय के उक्त श्लोक के ' योगारूढ़स्य तस्यैव शम: कारणमुच्यते ' में शम शब्द देख के एवं उसका अर्थ उपशम या मन की शांति लगा के संतोष कर लेते और कर्मों का त्याग जरूरी नहीं समझते उनकी समझ पर हमें तरस आता है।
  8. .. अर्थात्, चूंकि धर्म-प्रविचय से अतिरिक्त और कोई ऐसा साधन नहीं है जिससेक्लेशों का उपशम हो सके एवं चूंकि क्लेशों के कारण ही प्राणी भवार्णव मेंभ्रमण करता है, अतः परम कारुणिक शास्ताने इस [अभिवर्मकोष] का उपदेशदिया है जिसमें वस्तु-धर्मों का स्वरूप एवं उनके उपशम का मार्ग बताया है.
  9. .. अर्थात्, चूंकि धर्म-प्रविचय से अतिरिक्त और कोई ऐसा साधन नहीं है जिससेक्लेशों का उपशम हो सके एवं चूंकि क्लेशों के कारण ही प्राणी भवार्णव मेंभ्रमण करता है, अतः परम कारुणिक शास्ताने इस [अभिवर्मकोष] का उपदेशदिया है जिसमें वस्तु-धर्मों का स्वरूप एवं उनके उपशम का मार्ग बताया है.
  10. अतएव चेतना के निगूढ़ स्तरों में सुप्त अथवा अर्धसक्रिय संस्कारों से अनुस्यूत विभिन्न कामनाओं-प्रियपत्नी, वंशवदपुत्र, सामाजिक प्रतिष्ठा और ऐश्वर्य, अप्रिय व्यक्तियों और शत्रुओं के विनाश, मरणोत्तर सुखद जीवन और अन्त में वासनओं के उपशम को ध्यान में रखकर ही अर्थवाद का समानान्तर संसार ब्राह्मणग्रन्थकारों ने रचा है।
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