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कलना वाक्य

उच्चारण: [ kelnaa ]

उदाहरण वाक्य

  1. प्राक्तुभ्य इन्द्रः प्र वृधो अहभ्यः = इन्द्र अपनी विशालता के कारण रात दिन से बड़ा है | काल की कलना की कल्पना करते विकलता छा जाती है, तो जो काल से विशाल हो उसकी कलना = कल्पना कैसे हो? वह काल से विशाल प्रभु अप्रतर्क्यपरिमाण अन्तरिक्ष से भी विशाल है =
  2. प्राक्तुभ्य इन्द्रः प्र वृधो अहभ्यः = इन्द्र अपनी विशालता के कारण रात दिन से बड़ा है | काल की कलना की कल्पना करते विकलता छा जाती है, तो जो काल से विशाल हो उसकी कलना = कल्पना कैसे हो? वह काल से विशाल प्रभु अप्रतर्क्यपरिमाण अन्तरिक्ष से भी विशाल है =
  3. ज्ञानरूप संवित् जो आत्मतत्त्व है उससे कुछ भिन्न नहीं, जब संकल्पकला फुरती है तब ‘ अहं ' ‘ त्वं ' इत्यादिक कलना से वही रूप हो जाता है और जब आत्मा और प्राण का फुरना इकट्ठा होता है अर्थात् प्राणों से चेतन संवित् मिलता है तब उसका नाम जीव होता है ।
  4. अपनी कोलकता, भारत की मंदिर यात्राओं के दौरान ऊपर बताये गये मंदिरों के अतिरिक्त आप दूसरे मंदिर स्थलों को भी देख सकते हैं और ये हैं: कोलकता, भारत में कलना में स्थित कलनाशिवमंदिर, डायमंडहार्बर में कपिलमुनिमंदिर, मिदनापुर में कनकदुर्गामंदिर, मुर्शीदाबाद में कृतेश्वरी, मिदनापुर स्थित लालजीमंदिर। इसलिए आइये और कोलकता, भारत में पश्चिमबंगाल के मंदिरों को देखिए।
  5. हे रामजी! चित्तसत्ता अपने ही फुरने से जड़ता को प्राप्त हुई है और जब तक विचार करके न जगावे तब तक स्वरूप में नहीं जागती इसी कारण सत्य शास्त्रों के विचार और वैराग से इन्द्रियों का निग्रह करके अपनी कलना को आप जगावो सब जीवों की कलना विज्ञान और सम करके जगाने से ब्रह्म तत्त्व को प्राप्त होती है और इससे भिन्न मार्ग से भ्रमता रहता है ।
  6. हे रामजी! चित्तसत्ता अपने ही फुरने से जड़ता को प्राप्त हुई है और जब तक विचार करके न जगावे तब तक स्वरूप में नहीं जागती इसी कारण सत्य शास्त्रों के विचार और वैराग से इन्द्रियों का निग्रह करके अपनी कलना को आप जगावो सब जीवों की कलना विज्ञान और सम करके जगाने से ब्रह्म तत्त्व को प्राप्त होती है और इससे भिन्न मार्ग से भ्रमता रहता है ।
  7. माता जिस प्रकार अतीव स्नेह से बालक को सरलता से ज्ञान कराती है, उसी प्रकार वेदमाता भी अत्यन्त सरलता से बालक को बोध कराती है | काल बहुत विशाल है |काल की कलना कोई न कर सका | दिन रात में बंटा हुआ भी काल अकलनीय ही रहता है | वेद कहता है कालो ह भूतं भव्यं च (अथर्व वेद 19|54|3) = काल ही भूत और भविष्यत् है | जब भूत्-भविष्यकाल है तो कौन कह सकता है कि भूत कितना है?
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