कृपी वाक्य
उच्चारण: [ keripi ]
उदाहरण वाक्य
- मै आटा गूंथना नही जानता हूँ कृपी आप मुझे गेंहू का सादा आटा जून तने की विधि बताइए दरअसल मै खाना बनाने के मामले में बिल्कुल नया सा हूँ!!!! वैसे मुझे आपका यह प्रयास बड़ा ही सार्थक और उपयोगी लगा अब आप मुझे भोज न बनाने की प्राथमिक आवश्यकताओं के बारे में जो मै ने आपसे पुछा वो जरूर बताइयेगा!!!
- @ इसलिए स्वदेशी भाष का पक्ष लेने वालो को देश का दुश्मन कृपी मत कहिए > > कृपया शब्दों को तोड़े मरोडें नहीं! मैने अँग्रेज़ी (या किसी भी ज़रूरी बाहरी भाषा जैसे चाइनिस) का विरोध करने वालों को देश का दुश्मन बताया है, स्वदेश भाषा का पक्ष लेने वालों को नहीं! मेरे बच्चे पहले हिन्दी सीखे बाद मे अन्य भाषाएँ.
- इसलिए स्वदेशी भाष का पक्ष लेने वालो को देश का दुश्मन कृपी मत कहिए आज अगर वेदेश्ी तकनीक का स्वदेशी भाषा मे अनुवाद हुआ होता तो देश करीब ७ ५ % ग्रामीण बच्चे भी इस तकनीक से परिचित हो सकते थे! जो नही हो पाए आज ग्रामीण के बच्चे अधिकांश तौर पर अँग्रेज़ी भाषा मे फेल हो जाते है, जो बाद मे समाज मे भी पिछड़े बन जाते है!
- अखिल ब्रह्मेश् वरी माता शीतला अलग अलग स् थानों में अलग अलग नाम से जानी जाती, जैसे कौशाम् बी जनपद में ' कडे की देवी ', ऋषिकेश में ' बासंती माता ', मुजफ्फरनगर में ' बबरेवाली शीतला माता ', जम् मू और कश् मीर के स् थलन क्षेत्र में ' जौडीयां माता ', गुडगांव में ' कृपी माता ', आदि कई नाम से शक्तिपीठ या सिद्धपीठ स् थापित हैं।
- अश्वत्थामा द्रोणाचार्य का पुत्र था | कृपी उसकी माता थी | पैदा होते ही वह अश्व की भांति रोया था | इसलिए अश्व की भांति स्थाम (शब्द) करने के कारण उसका नाम अश्वत्थामा पड़ा था | वह बहुत ही क्रूर और दुष्ट बुद्धि वाला था | तभी पिता का उसके प्रति अधिक स्नेह नहीं था | धर्म और न्याय के प्रति उसके हृदय में सभी प्रेरणा नहीं होती थी और न वह किसी प्रकार का आततायीपन करने में हिचकता था |
- छोड़ दो, इसे छोड़ दो | मेरे बच्चे मरे है तो मैं रो रही हूँ | अब दंड देने के लिए हम इसे मारेंगे तो इसके मरने पर इसकी माँ-द्रोणाचार्य की पत्नी कृपी रोयेगी | अभी मैं एक नारी रो रही हूँ फिर दूसरी रोयेगी, तो इससे क्या प्राप्त होगा? ” दंड देने का बल भी है लेकिन सामनेवाला दु: खी न हो और अपने दुःख को नियंत्रण में रखकर पचा ले, ऐसी है भगवान की भक्त द्रोपदी का चरित्र!
- माता-पिता ने उन दोनों बालकों का पालन-पोषण नहीं किया, बल्कि उनको वन में अकेले छोड़कर वे चले गए | उसी वन से होकर एक बार महाराज शांतुन का कोई सैनिक निकला | उसने उन दोनों सुकुमार बालकों को देखा | निस्सहाय की भांति उनका रोना-बिलखना देखकर उसको उन पर दया आ गई और वह उनको उठाकर अपने घर ले आया | उसने घर पर उनका पालन-पोषण किया और चूंकि कृपा करके उसने उन बच्चों को रखा था | इसी कारण बालक का नाम तो कृप और बालिका का नाम कृपी विख्यात हो गया |
- भगवान कि कृपा से उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई बालक का नाम अश्वथामा रखा गया परंतु मां कृपी पुत्र को दुध पिलाने में असमर्थ थी इस कारण बालक के लिए दूध का प्रबंध करने के लिए गुरु द्रोण गाय लेने के लिए राजा द्रुपद के पास गए परंतु राजा ने उन्हें गाय देने से मना कर दिया इस पर गुरु द्रोण हताशा भाव से पुत्र अश्वस्थामा को समझाने का प्रयास करते हैं और कहते हैं कि समस्त गाय भगवान शिव के पास हैं अत: उनकी कृपा से ही तुम्हें दूध प्राप्ति हो पाएगी.