गांधार कला वाक्य
उच्चारण: [ gaaanedhaar kelaa ]
उदाहरण वाक्य
- गांधार कला की एक सुन्दर नारी की मूर्ति जो ‘ हरिति ' डॉ. वी. एस. अग्रवाल उसे कम्बोजीका की प्रतिमा मानते हैं जिसका नाम सिंहशीर्ष पर अंकित लेख में मिलता है।
- * गांधार कला की एक सुन्दर नारी की मूर्ति जो हारिति *, कम्बोजिका [1] आदि नामों से पहचानी जाती है मथुरा क्षेत्र से ही मिली है, उसका उल्लेख इस संदर्भ में आवश्यक है।
- इसने दारी तथा पश्तो जैसे साहित्य, चिश् तियों की सूफी परंपराएं, बामियान में बुद्ध और बौद्ध कला की विरासत, गांधार कला विद्यालय और तमाम समृद्धि के तत् व इस क्षेत्र और पूरी दुनिया को दिया है।
- गांधार कला में इस प्रकार की सुनिश्चित तिथियों से युक्त लेखांकित प्रतिमाओं का सर्वथा अभाव हें इसके अतिरिक्त देश की तत्कालीन स्थिति व धार्मिक अवस्था भी इसी ओर संकेत करती है कि प्रथम बुद्ध मूर्ति मथुरा में ही बनी होगी न कि गांधार में।
- बहरहाल, अपनी बात को और भी स्पष्ट करने की कोशिश में देवी-देवताओं के चित्रण से हटकर, भारतीय कला में अनावरण की अवधारणा को और भी पुष्ट करती हुई गांधार कला के कुछ नमूनों पर यदि हम गौर करें, तो हमें अपनी ओर से कुछ जोड़ने की आवश्यकता नहीं रह जाती (चित्र 6)।
- ) बहरहाल, अपनी बात को और भी स्पष्ट करने की कोशिश में देवी-देवताओं के चित्रण से हटकर, भारतीय कला में अनावरण की अवधारणा को और भी पुष्ट करती हुई गांधार कला के कुछ नमूनों पर यदि हम गौर करें, तो हमें अपनी ओर से कुछ जोड़ने की आवश्यकता नहीं रह जाती (चित्र 6) ।
- नवीन अभिप्रायों से तात्पर्य उन अभिप्रायों से है जो गांधार कला के सम्पर्क में आने के बाद मथुरा की कलाकृतियों में भी अपनाए गए इनमें (CORINTHIAN FLOWER) भटकटैया का फूल, प्रभामण्डल, मालाधारी यक्ष, अंगूर की लता, मध्य एशिया और ईरानी पद्धति के ताबीज के समान अलंकार आदि की गणना की जा सकती हैं।
- प्रथम प्रकार के अभिप्राय वे हैं जो विशुद्ध रुप से भारतीय हैं और गांधार कला के सम्पर्क के पूर्व बराबर व्यवछत होते थे, इनमें पशु-पक्षियों के अतिरिक्त दोहरे छत वाल विहार, गवाक्ष, वातायन, वेदिकाएँ, कपि-शीर्ष, कमल, मणि माला, पंच्चवाट्टिका, घण्टावली, हत्थे या पंचाङ्गुलितल, अष्ट मांगलिक चिन्ह यथा पूर्णघट भद्रासन, स्वास्तिक, मीन-युग्म, शराव-सम्पुट, श्रीवत्स, रत्नपात्र, व त्रिरत्न आदि का समावेश होता है।
- प्रथम प्रकार के अभिप्राय वे हैं जो विशुद्ध रूप से भारतीय हैं और गांधार कला के संपर्क में आने के पूर्व बराबर व्यवहृत होते थे, इनमें पशु-पक्षियों के अतिरिक्त दोहरे छत वाले विहार, गवाक्ष वातायन, वेदिकाएं, कपि-शीर्ष, कमल, मणिमाला, पंचपटि्टका, घण्टावली, हत्थे या पंचागङुलितल, अष्टमांगलिक चिह्र यथा पूर्णघट, भद्रासन, स्वस्तिक, मीन-युग्म, शराव-संपुट, श्रीवत्स, रत्न-पात्र व त्रिरत्न, आदि का समावेश होता है।