गेंदालाल दीक्षित वाक्य
उच्चारण: [ gaenedaalaal dikesit ]
उदाहरण वाक्य
- मुकुन्दी लाल, दम्मीलाल, करोरीलाल गुप्ता, सिद्ध गोपाल चतुर्वेदी, गोपीनाथ, प्रभाकर पाण्डे, चन्द्रधर जौहरी और शिव किशन आदि ने औरैया जिला इटावा निवासी पण्डित गेंदालाल दीक्षित के नेतृत्व में अंग्रेजों के विरुद्ध काम करने के लिये उनकी संस्था शिवाजी समिति से हाथ मिलाया और एक नयी संस्था मातृवेदी की स्थापना की।
- स्वतन्त्रता के महायज्ञ में ' मातृवेदी संगठन ' ने जो काम किया वह इसलिये और भी वन्दनीय है कि उसके संस्थापक व अध्यक्ष पं. गेंदालाल दीक्षित जो वीर क्रान्तिकारी बिस्मिल के गुरु व मित्र थे, आजादी की राह में चुपचाप तन मन और धन से समर्पित होगए ।
- गेंदालाल दीक्षित, पहली डकैती, मैनपुरी षड़यंत्र, विशेष परिचय, शाहज़हाँपुर, श्री रामप्रसाद बिस्मिल कालकोठरी के गीत और अँतिम नोट अपनी प्रिय कविताओं के उल्लेख के बाद शहीद बिस्मिल ने अपनी कालकोठरी में गाये जाने वाले गीतों का उल्लेख करते हुये एक अँतिम नोट राष्ट्रवासियों के नाम दिया है, जो कि स्वगत कथन जैसा ही है ।
- मुकुन्दी लाल, दम्मीलाल, करोरीलाल गुप्ता, सिद्ध गोपाल चतुर्वेदी, गोपीनाथ, प्रभाकर पाण्डे, चन्द्रधर जौहरी और शिव किशन आदि ने औरैया जिला इटावा निवासी पण्डित गेंदालाल दीक्षित के नेतृत्व में अंग्रेजों के विरुद्ध काम करने के लिये उनकी संस्था शिवाजी समिति से हाथ मिलाया और एक नयी संस्था मातृवेदी की स्थापना की।
- पढ़ें स्वतंत्रता दिवस से जुड़ी खबरें अंग्रेजों के खिलाफ भारत छोड़ो आन्दोलन में चम्बल के किनारे बसी हथकान रियासत के हथकान थाने में सन् 1909 में चॢचत डकैत पंचम सिंह, पामर और मुस्कुंड के सहयोग से क्रान्तिकारी पडिण्त गेंदालाल दीक्षित ने थाने पर हमला कर 21 पुलिस कॢमयों को मौत के घाट उतार दिया और थाना लूट लिया।
- मैनपुरी षडयन्त्र पं० गेंदालाल दीक्षित: मैनपुरी षडयंत्र में पं० राम प्रसाद बिस्मिल के मार्गदर्शक सन १९१५ में भाई परमानन्द की फाँसी का समाचार सुनकर रामप्रसाद ब्रिटिश साम्राज्य को समूल नष्ट करने की प्रतिज्ञा कर चुके थे, १९१६ में एक पुस्तक छपकर आ चुकी थी, कुछ नवयुवक उनसे जुड़ चुके थे, स्वामी सोमदेव का आशीर्वाद भी उन्हें प्राप्त हो चुका था;
- सन १ ९ १ ५ में भाई परमानन्द की फाँसी का समाचार सुनकर रामप्रसाद ब्रिटिश साम्राज्य को समूल नष्ट करने की प्रतिज्ञा कर चुके थे, १ ९ १ ६ में एक पुस्तक भी छपकर आ चुकी थी, कुछ नवयुवक भी उनसे जुड़ चुके थे, स्वामी सोमदेव का आशीर्वाद भी उन्हें प्राप्त चुका था ; अब तलाश थी तो एक संगठन की जो उन्होंने पं ० गेंदालाल दीक्षित के मार्गदर्शन में मातृवेदी के नाम से खुद खड़ा कर लिया था।