गोपाल प्रसाद व्यास वाक्य
उच्चारण: [ gaopaal persaad veyaas ]
उदाहरण वाक्य
- इस तरह के दोहरे चरित्र वाले मैंने भी कई जगह देखें हैं:-एक बार कवि सम्मेलन में श्री गोपाल प्रसाद व्यास जी के सुपुत्र श्री गोविन्द व्यास जी पान खाते हुए गरीबी और भूख पर कविता पाठ कर रहे थे...
- दास केडिया · अनूप शर्मा · काका हाथरसी · कुंजर भारती · केशवसुत · शिवदीन राम जोशी · शिवमंगल सिंह सुमन · श्यामनारायण पांडेय · गोपाल प्रसाद व्यास · शमशेर बहादुर सिंह · जानकी वल्लभ शास्त्री · मीर · भवानी प्रसाद मिश्र · दुष्यंत कुमार · नामवर सिंह
- आज जब इस देश में भाषा, प्रान्त, धर्म व जाति के नाम पर विद्वेष की राजनीति की जा रही है और इसमे आम जानता भी कहीं न कहीं शामिल हो रही है तो यैसे में गोपाल प्रसाद व्यास की ये पंक्तियाँ बहुत याद आती हैं!
- इलाचंद्र जोशी, रामानंद दोषी, गोपाल प्रसाद व्यास से लगायत अज्ञेय, मोहन राकेश, धर्मवीर भारती, रघुवीर सहाय, कमलेश्वर, मनोहर श्याम जोशी, कन्हैयालाल नंदन, राजेंद्र अवस्थी, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, भैरव प्रसाद गुप्त, अमरकांत आदि की एक लंबी सूची है।
- फुर्सत में बहुत बढ़िया कविता कर लेते हैं आप…कलकत्ते वाली कविता पढ़ कर गोपाल प्रसाद व्यास जी की ये कविता याद आ गयी… “हवा चली डाल हिली गिरा एक पत्ता दिल्ली से उड़ा उड़ा पहुंचा कलकत्ता वाह रे रंगीले पिया ये तुमने क्या किया बासंती मौसम में ले आये छत्ता” नीरज
- माता के चरणों में यह लो, हम अपना रक्त चढ़ाते हैं साहस से बढ़े युवक उस दिन, देखा बढ़ते ही आते थे और चाकू, छुरी, कटारों से, वे अपना रक्त गिराते थे फिर उसी रक्त की स्याही में, वे अपनी क़लम डुबोते थे आज़ादी के परवाने पर, हस्ताक्षर करते जाते थे उस दिन तारों ने देखा था, हिन्दुस्तानी विश्वास नया जब लिखा था रणवीरों ने, ख़ूँ से अपना इतिहास नया-गोपाल प्रसाद व्यास
- आदित्य जी घनाक्षरी छंदों से काव्यपाठ की शुरुआत करते थे दो चार छंद और एक दो प्रतिनिधि कवितायेँ और बीच बीच में उनके संस्मरण जो वास्तव में प्रेरणा दायक होते थे, मैं हरदम कहता हूँ की “ हास्य में कविता ” और वो भी ' छंद ' के साथ, मुझे बहुत ज्यादा नाम नहीं सूझते ' गोपाल प्रसाद व्यास, काका हाथरसी और फिर घूम फिरकर आदित्य दा. उनके छंद पढने का अंदाज़ निराला था.
- माता के चरणों में यह लो, हम अपना रक्त चढ़ाते हैं साहस से बढ़े युवक उस दिन, देखा बढ़ते ही आते थे और चाकू, छुरी, कटारों से, वे अपना रक्त गिराते थे फिर उसी रक्त की स्याही में, वे अपनी क़लम डुबोते थे आज़ादी के परवाने पर, हस्ताक्षर करते जाते थे उस दिन तारों ने देखा था, हिन्दुस्तानी विश्वास नया जब लिखा था रणवीरों ने, ख़ूँ से अपना इतिहास नया-गोपाल प्रसाद व्यास पंद्रह अगस्त की पुकार पंद्रह अगस्त का दिन कहता-आज़ादी अभी अधूरी है।