तेरा ज़िक्र वाक्य
उच्चारण: [ taa jeiker ]
उदाहरण वाक्य
- हिन्दी-उर्दू में कहो या किसी भाषा में कहो बात का दिल पे असर हो तो ग़ज़ल होती है ग़ज़लें अख़बार की ख़बरों की तरह लगती हैं हाँ तेरा ज़िक्र अगर हो तो ग़ज़ल होती है इसी बात को एक दूसरी ग़ज़ल में आप यूँ कहते हैं:
- कल मिला वक़्त, तो जुल्फें तेरी सुलझाउंगा, आज ज़रा उलझा हूँ, वक़्त को सुलझाने में..!! मुदात्तो बाद भी...............तेरा नाम, ये असर रखता है, तेरा जिक्र भी,...............मेरी पलखो को भींगा जाता है // तेरा नाम कितना मुखतसर सा है.... तेरा ज़िक्र कितना तवील है....
- तुम क्या गए फिर लौट आए दिन शराब के भीगती साँसे डूबती आँखे दिल-ऐ-बेताब के रातो को बरसते है बादल कुछ ऐसे टूटके छलक जाते है शब-ऐ-ग़म अश्क माहताब के मत जाना चमन में कि माहौल ठीक नही बहकी है कलियाँ बदले है मिजाज़ गुलाब के मयक़दे में भी गए मगर तेरा ज़िक्र न
- तुम क्या गए फिर लौट आए दिन शराब के भीगती साँसे डूबती आँखे दिल-ऐ-बेताब के रातो को बरसते है बादल कुछ ऐसे टूटके छलक जाते है शब-ऐ-ग़म अश्क माहताब के मत जाना चमन में कि माहौल ठीक नही बहकी है कलियाँ बदले है मिजाज़ गुलाब के मयक़दे में भी गए मगर तेरा ज़िक्र न...
- तू पास भी हो तो दिल बेक़रार अपना है के हमको तेरा नहीं इंतज़ार अपना है मिले कोई भी तेरा ज़िक्र छेड़ देते हैं के जैसे सारा जहाँ राज़दार अपना है वो दूर हो तो बजा तर्क-ए-दोस्ती का ख़याल वो सामने हो तो कब इख़्तियार अपना है ज़माने भर के दुखों को लगा लिया दिल …
- देखा नहीं कई सालों से तुझे कोई ख़त भी तो नहीं आया तेरा न कभी महफ़िल में तेरा ज़िक्र आया कहाँ होगी, कैसी होगी तू क्या अब भी पूनम के चाँद को तू देखती है क्या अब भी आगे चलने वाले की चप्पल दबाना और फिर अनजान बनकर इधर उधर देखना और फिर पागलों की तरह हँसना अच्छा लगता है तुझे..
- बस इक झिझक है यही हाल-ए-दिल सुनाने में कि तेरा ज़िक्र भी आयेगा इस फ़साने में बरस पड़ी थी जो रुख़ से नक़ाब उठाने में वो चाँदनी है अभी तक मेरे ग़रीब-ख़ाने में इसी में इश्क़ की क़िस्मत बदल भी सकती थी जो वक़्त बीत गया मुझ को आज़माने में ये कह के टूट पड़ा शाख़-ए-गुल से आख़िरी फूल अब और देर है कितनी बहार आने में!!!!!!!!!!!!! प्रस्तुतकर्ता
- कहाँ हो तुम एक बार तो आ जाओ आँखों में सहेज कर रखा है देखा नहीं कई सालों से तुझे कोई ख़त भी तो नहीं आया तेरा न कभी महफ़िल में तेरा ज़िक्र आया कहाँ होगी, कैसी होगी तू क्या अब भी पूनम के चाँद को तू देखती है क्या अब भी आगे चलने वाले की चप्पल दबाना और फिर अनजान बनकर इधर उधर देखना और फिर पागलों की तरह हँसना अच्छा लगता है तुझे..
- जिगर के तार अब भी अनायास ही खिंच जाते हैं जो तेरा ज़िक्र होता है किसी महफ़िल में | वो वक़्त जो गुज़र नहीं पाया गाहे-बगाहे मेरी जुल्फों में, स्याह से सफ़ेद होते लम्हों की कहानी में बेतुकल्लुफ़-सा होने लगता है जब कभी, तो मैं बड़े करीने से उसे अपने जुड़े में पिरो लेती हूँ | नाहक ही जिंदगी के शांत दरिया में, समय गुज़ारने की एवज में फेंकी गई कंकरी भी बेवजह
- मेलोड्रामा का स्वागत है गुज़ारिश-ये तेरा ज़िक्र है या इत्र है गुज़ारिश अलग है, जुदा है, अलहदा है, एक खूबसूरत फिल्म, मै फिल्मे देखते वक़्त उसी के साथ बह जाता हूँ-कई बार देखते देखते रोता भी हूँ, गुज़ारिश ऐसी ही फिल्म है, कुछ एक सीन तो वाकई आपको रुला देंगे......फिल्म एक काबिल स्टेज ड्रामा की तरह है......भंसाली वैसे भी एक ऐसे फिल्मकार है जिनकी फिल्म में आर्ट होती है.....