तैत्तिरीय संहिता वाक्य
उच्चारण: [ taitetiriy senhitaa ]
उदाहरण वाक्य
- [146] तैत्तिरीय संहिता [147] में आया है-” बृहस्पति ने इच्छा प्रकट की ; देव मुझमें विश्वास (श्रद्धा) रखें, मैं उनके पुरोहित का पद प्राप्त करूँ।
- तैत्तिरीय संहिता [82] में आया है-' देवों एवं मनुष्यों ने दिशाओं को बाँट लिया, देवों ने पूर्व लिया, पितरों ने दक्षिण, मनुष्यों ने पश्चिम एवं रुद्रों ने उत्तर।
- * तैत्तिरीय संहिता * में तीन ऋणों के वर्णन में ' ब्रह्मचारी ' एवं ' ब्रह्मचर्य ' शब्द आये हैं-' ब्राह्मण जब जन्म लेता है तो तीन वर्गों के व्यक्तियों का ऋणी होता है ;
- एक स्थान से दुसरे स्थान पर पृथ्वी के अयन चलने के कारण खिसकते प्रतीत होने वाले तारामंडलों का नाम नक्षत्र है! तैत्तिरीय संहिता में कहा गया है सृष्टि सर्वत्र जल में रहने पर सृष्टि की शुरुआत में जो तर गए वे तारे हैं!
- १ ४, तैत्तिरीय संहिता ३. १. ३ और भागवत ९. ४. १-१ ४ में कथा आती है कि नाभानेदिष्ठ के पिता मनु ने उसे ऋग्वेद दशम मंडल के सूक्त ६ १ और ६ २ का प्रचार करने के लिए कहा।
- पी. वी. काणे धर्मशास्त्र का इतिहास में लिखते हैं कि ' ऋग्वेद (1 / 109 / 2), मैत्रायणी संहिता (1 / 10 / 1), निरुक्त (6 / 9, 3 / 4), ऋग्वेद (3 / 31 / 2), ऐतरेय ब्राह्मण (33), तैत्तिरीय संहिता (5 / 2 / 1 / 3), तैत्तिरीय ब्राह्मण (1 / 7 / 10) आदि से विदित होता है कि प्राचीन काल में विवाह के लिए कन्याओं का क्रय. विक्रय होता था।