नारलाई वाक्य
उच्चारण: [ naarelaae ]
उदाहरण वाक्य
- गिरनार एवं शत्रुन्जय तीर्थ के प्रतीक माने जाने वाले नारलाई के इन दोनों मंदिरों के बारे में कहा जाता है कि आबू स्थित देलवाड़ा के जैन मंदिर के निर्माता वास्तुपाल व तेजपाल का ऐसा संकल्प था कि वे शत्रुन्जय व गिरनार तीर्थ के दर्शन करके ही पच्चमक्खान करते थे, जब वे नारलाई आये तो अपने संकल्प के अनुसार यहां दोनों मंदिरों की स्थापना की।
- नारलाई गाँव के मुख्य द्वार के संमुख श्री आदिनाथ भगवान का प्राचीन एवं विशाल जिनालय है | इस मंदिर में ऐतिहासिक एवं पुरातत्व की द्ष्टी से कई महत्वपूर्ण शिलालेख हैं, जो जिनविजय द्वारा संग्रहित प्राचीन जैन लेख संग्रह भाग २ पुस्तक में उल्लेखित हैं | सन् १ ९ ४४-४ ५ में जोधपुर म्युजियम में राणकपुर के जगप्रसिद्ध मंदिर के साथ [...]
- ७. श्री नमीनाथ जिनालय से करीब १ ०० फुट की दूरी पर श्री सोगटिया पार्श्वनाथ भगवान का पूर्वाभिमुख मंदिर है | इस मंदिर में श्री सोगटिया पार्श्वनाथ भगवान की प्राचीन प्रतिमा बिराजमान है | भारत देश के किसी भी राज्य में जहा जहा १ ० ८ पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर बनाया जाता है उसमें नारलाई के श्री सोगटिया पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा अवश्य होती है |
- मुगल सम्राट अकबर को प्रतिबोधित करने वाले जगतगुरु महान आचार्य श्री विजय हीर सूरीश्वरजी के शिष्यरत्न श्री विजयसेन सूरीश्वरजी एवं महान् जैन कवि श्री ऋषभदासजी की जन्म-भुमि है यह नारलाई गाँव | संवत् १ ६ ० ७ एवं संवत १ ६ ० ८ में श्री विजय हीर सुरीश्वरजी को पंन्यास पद एवं उपाध्याय पद से अलंकृत करने का सौभाग्य इसी गाँव के जैन संघ को प्राप्त हुआ था |
- जीवा तथा माता जसमादे के पुत्र सा नाथा ने इस प्रतिमा को भराया जिसकी प्रतिष्ठा भट्टारक श्री विजय प्रभसूरी ने करवाई | उस समय में नारलाई गाँव में जैनों के २ ७ ०० घर थे अतः इस विशाल मंदिर के दो द्वार बने हुए है | इस मंदिर के निर्माण की यह विशेषता है कि मंदिर के मुख्य द्वार के समक्ष भूमि पर खडे रहकर, घोडे पर सवार होकर या हाथी कि अम्बाडी पर बैठकर भगवान श्री सुपार्श्वनाथजी के दर्शन किए जा सकते हैं |
- इन्ही केशवसुरी ने आगे चल कर हथुंडी (राता महावीरजी) के राजा विदग्धराज को प्रतिबोधित कर जैन धर्म अंगिकार करवाया था | तपेश्वरजी द्वारा लाया गया शिवमंदिर आज भी नारलाई में तपेश्वर महादेव मंदिर के नाम से विख्यात हैं | इन दोनों विद्वान, मंत्र सिद्ध विभूतियों का स्वर्गवास इसी नारलाई गाँव में हुआ था | इनके स्तूप आज भी नारलाई गाँव में विद्यमान हैं जो एशिया एवं केशीया के नाम से जाने जाते हैं | श्री लावण्यमयजी द्वारा रचित तीर्थ माला में उपर्युक्त वृत्तांत आता हैं |
- इन्ही केशवसुरी ने आगे चल कर हथुंडी (राता महावीरजी) के राजा विदग्धराज को प्रतिबोधित कर जैन धर्म अंगिकार करवाया था | तपेश्वरजी द्वारा लाया गया शिवमंदिर आज भी नारलाई में तपेश्वर महादेव मंदिर के नाम से विख्यात हैं | इन दोनों विद्वान, मंत्र सिद्ध विभूतियों का स्वर्गवास इसी नारलाई गाँव में हुआ था | इनके स्तूप आज भी नारलाई गाँव में विद्यमान हैं जो एशिया एवं केशीया के नाम से जाने जाते हैं | श्री लावण्यमयजी द्वारा रचित तीर्थ माला में उपर्युक्त वृत्तांत आता हैं |
- इन्ही केशवसुरी ने आगे चल कर हथुंडी (राता महावीरजी) के राजा विदग्धराज को प्रतिबोधित कर जैन धर्म अंगिकार करवाया था | तपेश्वरजी द्वारा लाया गया शिवमंदिर आज भी नारलाई में तपेश्वर महादेव मंदिर के नाम से विख्यात हैं | इन दोनों विद्वान, मंत्र सिद्ध विभूतियों का स्वर्गवास इसी नारलाई गाँव में हुआ था | इनके स्तूप आज भी नारलाई गाँव में विद्यमान हैं जो एशिया एवं केशीया के नाम से जाने जाते हैं | श्री लावण्यमयजी द्वारा रचित तीर्थ माला में उपर्युक्त वृत्तांत आता हैं |
- अपनी जन्म भूमी नारलाई तीर्थ के प्राकृतिक सौन्द्रय युक्त शांत वातावरण में मुम्बई की भाग दौड वाली जींदगी से हटकर प्रथम बार सिर्फ पर्व पर्युषण की संपूर्ण आराधना का कार्यक्रम, शेठ श्री जालमचंदजी सागरमलजी वारो परिवार के सहयोग से श्री जैन नवयुवक मंडल द्वारा आयोजित किया गया हैं | आप सभी नारलाई निवासी इस आराधना में जरूर पधारे | पर्युषण की संपूर्ण आराधना नारलाई करने पधारने वाले आराधकों को एक तरफा शयनयान श्रेणी (Sleeper Coach) का किराया मातुश्री मदनबेन जावतराजजी बाफना परिवार द्वारा दिया जायेगा |
- अपनी जन्म भूमी नारलाई तीर्थ के प्राकृतिक सौन्द्रय युक्त शांत वातावरण में मुम्बई की भाग दौड वाली जींदगी से हटकर प्रथम बार सिर्फ पर्व पर्युषण की संपूर्ण आराधना का कार्यक्रम, शेठ श्री जालमचंदजी सागरमलजी वारो परिवार के सहयोग से श्री जैन नवयुवक मंडल द्वारा आयोजित किया गया हैं | आप सभी नारलाई निवासी इस आराधना में जरूर पधारे | पर्युषण की संपूर्ण आराधना नारलाई करने पधारने वाले आराधकों को एक तरफा शयनयान श्रेणी (Sleeper Coach) का किराया मातुश्री मदनबेन जावतराजजी बाफना परिवार द्वारा दिया जायेगा |