फलदीपिका वाक्य
उच्चारण: [ feldipikaa ]
उदाहरण वाक्य
- फलदीपिका ग्रंथ के अनुसार-दशमेश यदि बुध के नवांश में हो तो काव्यागम, लेखनवृत्ति, लिपिविद्या, ज्योतिष, ग्रह नक्षत्र से संबंधित व्यवसाय, गणित, पूजा पाठ, पुरोहित आदि के कार्य द्वारा वृत्ति होती है।
- फलदीपिका ग्रंथ के अनुसार बहुत बलवान लग्नेश यदि केंद्र में शुभ ग्रहों से दृष्ट युत हो और पापी ग्रहों से दृष्ट न हो, तो वह सभी अरिष्टों को दूर कर व्यक्ति को दीर्घायु और धन समृद्धि देता है।
- बृहद् पाराशर होरा शास्त्र, जैमिनी सूत्र, बृहज्जातक, सारावली, जातकाभरण, दैवज्ञाभरण, फलदीपिका, प्रश्न मार्ग, कृष्णीयम्, माधवीयम् एवं मानसागरी जैसे होराशास्त्र के मानक या निबंध ग्रंथों में कालसर्प योग की चर्चा नहीं मिलती।
- फलदीपिका के 20 वें अध्याय मंे रचनाकार स्पष्ट करता है कि विंशोत्तरी दशा-अंतर्दशा के शुभ फल तभी प्राप्त होते हैं जब दशा या अंतर्दशा का स्वामी ग्रह शुभ भावेश होकर स्व या उच्च राशि में विद्यमान हो अथवा वक्री हो।
- ज्योतिष के मान्य फलित ग्रंथों बृहज्जातक, सारावली, फलदीपिका,बृहत् पाराशर इत्यादि के अनुसार मंगल क्रूर दृष्टि वाला,युवक,पतली कमर वाला,अग्नि के सामान कान्ति वाला,रक्त वर्ण,पित्त प्रकृति का,साहसी,चंचल,लाल नेत्रों वाला,उदार,अस्थिर स्वभाव का है |
- फलदीपिका ' ग्रंथ के अनुसार ‘‘ आयु, मृत्यु, भय, दुख, अपमान, रोग, दरिद्रता, दासता, बदनामी, विपत्ति, निन्दित कार्य, नीच लोगों से सहायता, आलस, कर्ज, लोहा, कृषि उपकरण तथा बंधन का विचार शनि ग्रह से होता है।
- फलदीपिका ' ग्रंथ के अनुसार ‘‘ आयु, मृत्यु, भय, दुख, अपमान, रोग, दरिद्रता, दासता, बदनामी, विपत्ति, निन्दित कार्य, नीच लोगों से सहायता, आलस, कर्ज, लोहा, कृषि उपकरण तथा बंधन का विचार शनि ग्रह से होता है।
- बृहत् पाराशर, सारावली, फलदीपिका आदि ग्रंथों के मतानुसार बुध सुन्दर, हास्य प्रिय, वात-पित्त-कफ प्रकृति का, कार्य करने में चतुर, मधुर भाषी, रजोगुणी, विद्वान, त्वचा व नस प्रधान शरीर वाला, कला कुशल, सांवले रंग का तथा हरे रंग के वस्त्र धारण करने वाला है |
- प्रसिद्द प्राचीन ज्योतिषाचार्य जिनका युवावस्था में नाम मार्कंडेय भट्टाद्रि था, तथा जिन्हें बाद में उनकी विलक्षण बौद्धिक क्षमता एवं विद्वत्ता के कारण मन्त्रेश्वर के नाम से जाना गया, उनकी कालजयी कृति “ फलदीपिका ” में ग्रहों के द्वारा प्रभावित होने वाले या उनसे सम्बंधित खनिज, वनस्पति तथा द्रव्यों का विशद विवरण उपलब्ध है।
- श्री गर्ग जी छठे, आठवें या बारहवें घर के स्वामी परस्पर स्थान परिवर्तन करते है तो “ दीन ” योग बनता है-देखें गोपेश दीक्षित के द्वारा टीका कृत “ फलदीपिका ” किन्तु यदि इनमें से कोई एक दूसरे के घर में बैठता है तो क्रमशः सरल, विमल एवं मुदित योग बनता है.