फ़िक़्ह वाक्य
उच्चारण: [ feikeh ]
उदाहरण वाक्य
- इमामे मूसा काज़िम अ. नें भी अपने जीवन में यही जेहाद किया और इसी जेहाद में अपनी पूरी ज़िन्दगी लगा दी, उनकी क्लास, उनकी शिक्षाएं, उनकी फ़िक़्ह, उनकी हदीस, उनका तक़य्या और उनका सब कुछ इसी मक़सद को पूरा करने के लिये था।
- उनकी अपनी जीवनियों और मुहम्मद साहब के जीवन और कथनों के बारे में उनके द्वारा दिए गए बयानों को इस्लामी क़ानून (' शरिया '), जीवन-रीति व परम्परा (' सुन्नाह ') और न्याय-दर्शन (' फ़िक़्ह ') के विकास में भारी महत्व दिया गया।
- चलिए, क़ुरान, हदीस, इस्लामी फ़िक़्ह जैसे गाढ़े पाठ न सही आप तो तालिबान और अलक़ायदा के परे मुस्लिम-जगत से संबंधित ' ख़बरें ' भी नहीं पढ़ते शायद. शिक्षित मुसलमान जिस इस्लाम को बड़े फ़ के साथ अपनाता है अभी आपने उस पर अपनी मेहरबान नज़र नहीं डाली है.
- एक पाठकीय प्रतिक्रिया में मुझसे तीखा सवाल पूछा गया है कि इस्लाम, क़ुरान और शरीअत में रहकर कैसा नारी चिंतन? स्वयं अधिसंख्य मुसलमान औरतें (व मर्द भी) मुस्लिम धार्मिक नेतृत्व के फैलाए हुए भ्रम का शिकार हैं कि इस्लाम, क़ुरान, सुन्नः, शरीअत और फ़िक़्ह एक ऐसा हौआ है जिसे आम आदमी न समझ सकता है न छू सकता है.
- इस मरजए तक़लीद ने विश्वविद्यालय की गतिविधियों की ओर इशारा करते हुए कहा कि उम्मीद है कि हज़रत इमाम रेज़ा (अ.) के नाम के इस विश्वविद्यालय को वैश्विक अकादमिक केंद्र होना चाहिए, इतने बड़े नाम से सम्बंधित विश्वविद्यालय को दुनिया में इस्लामी ज्ञान, तफ़सीर, हदीस, रिजाल, उसूल, फ़िक़्ह और अन्य ज्ञान में प्रसिद्ध होना चाहिए और इस्लामी दुनिया के गर्व का कारण बनना चाहिए।
- इस्लाम धर्म के निगाह से अक़्ल की हुज्जियत और उस पर भरोसे के बारे में बहुत सी आयतें और रवायतों को मिसाल के तौर पर पेश किया जा सकता है, क़ुरआन मजीद में 49 बार अक़्ल और उससे निकने वाले दूसरे शब्द, 18 बार फ़िक्र और उससे निकलने वाले दूसरे शब्द, 20 बार फ़िक़्ह और तफ़क़्क़ोह और उससे निकलने वाले दूसरे शब्द और सैकड़ों बार इल्म और उससे निकलने वाले शब्दों का प्रयोग किया गया है।
- रुचिकर बात ये है कि इस्लामी फ़िक़्ह (एक प्रकार का धार्मिक इल्म है) में अक़्ल को क़ुरआने मजीद, सुन्नत और इजमाअ के साथ में फ़िक़्ही अहकाम के इस्तिम्बात (अहकाम को निकानले का कार्य) के एक स्रोत की हैसियत हासिल है और इस स्थान पर फ़ोक़हा और मुजतहेदीन (वह धर्म गुरू जो मुसलमानो के लिए अहकाम निकाल कर फ़तवा देते हैं) अक़्ल और धर्म को एक दूसरे पर आश्रित मानते हैं जो “ क़ानूने मुलाज़ेमत ” के नाम से प्रसिद्ध है “