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बृजभाषा वाक्य

उच्चारण: [ berijebhaasaa ]

उदाहरण वाक्य

  1. आखिर नटवरलाल कहां नहीं हैं? कौवा जब बोले तब 'कांव' बृजभाषा की एक कहावत है कि कौवा जब बोले तब 'कांव'. कौवे को प्रकृति ने 'कांव' बोलने के लिये ही तो बनाया है.
  2. पर जो बात बृजभाषा बैण्ड में होती है वह किसी और में कहाँ? इसीलिए पत्नी को मैंने उसकी इच्छा के प्रतिकूल मुझसे बात करते समय बृजभाषा बैण्ड पर रहने को राजी किया हुआ है ।
  3. पर जो बात बृजभाषा बैण्ड में होती है वह किसी और में कहाँ? इसीलिए पत्नी को मैंने उसकी इच्छा के प्रतिकूल मुझसे बात करते समय बृजभाषा बैण्ड पर रहने को राजी किया हुआ है ।
  4. लोकगीतों की हमारे यहाँ समृद्ध परंपरा रही है और अवधी, बृजभाषा या भोजपुरी के गीतों की धूम रही है जिनमे एक से बढ़कर एक गीत जीवन के हर मोड के लिए है बिरह से लेकर मिलन तक.
  5. संभवत: ऐसे वरिष्ठ हृदय की यौवन भरी मनोभावनाओं को व्यक्त करने के लिए ही बृजभाषा की ये कहावतें आज भी प्रचलित हैं-“ फागुन में बाबा देवर लागे ” अथवा “ फागुन में जेठ कहे भाभी ” ।
  6. महाकवि सूरदास ने भीसूरसागर में श्रीकृष्ण की बाल-लीलाओं का बृजभाषा में जिस उच्चकोटि कावर्णन किया है, अन्य कवि उस स्तर तक श्रीकृष्ण का वर्णन करने में असमर्थरहे हैं उनका समस्त काव्य गेय पदों में है जिसमें वात्सल्य और श्रृंगाररस प्रधान है.
  7. रसखान बृजभाषा के भक्तिमार्गी कवियों की कृष्ण भक्ति शाखा के कवियों में महान इसलिए नहीं हैं की उनकी कविता उत्कृष्ट है बल्कि सबसे बड़ा तत्व यह है की वे मुस्लिम थे और उन्होंने कृष्ण भक्ति के पड़ लिखने का साहस दिखाया।
  8. ऑफिस में हों या बेटों से बात करें तो शहरी हिन्दी का बैण्ड, पत्नी से बात करें या गाँव में हों तो गाँव की अपनी प्यारी बृजभाषा का बैण्ड, अभी चेन्नई से किसी पुराने साथी का फोन आ जाए तो अंग्रेजी का बैण्ड अपने आप ही लग जाता है ।
  9. इसके अलावा कहलूर-हंडूर, बिलासपुर-नालागढ़, सिरमौर रियासत का इतिहास [उर्दू], कटोच वंश का इतिहास, कनावार जिसमें किन्नौर का इतिहास, राजघराने, नूरपूर पठानिया, पठानिया वंश का इतिहास, बृजभाषा में रसविलास, सिरमौर सांचा [पाउची में], रामपुर के ढलोग से मंत्र-तंत्र, राजगढ़ से 300 साला पुराना इतिहास, 12वीं शताब्दी में राजस्थान के पंडित रानी के दहेज में आए थे उनके ग्रंथ भी मिले हैं जो पाउची में हैं।
  10. इसके अलावा कहलूर-हंडूर, बिलासपुर-नालागढ़, सिरमौर रियासत का इतिहास [उर्दू], कटोच वंश का इतिहास, कनावार जिसमें किन्नौर का इतिहास, राजघराने, नूरपूर पठानिया, पठानिया वंश का इतिहास, बृजभाषा में रसविलास, सिरमौर सांचा [पाउची में], रामपुर के ढलोग से मंत्र-तंत्र, राजगढ़ से 300 साला पुराना इतिहास, 12 वीं शताब्दी में राजस्थान के पंडित रानी के दहेज में आए थे उनके ग्रंथ भी मिले हैं जो पाउची में हैं।
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