ब्राह्मी स्थिति वाक्य
उच्चारण: [ beraahemi sethiti ]
उदाहरण वाक्य
- भूमासाधना द्वारा मन की वृत्तियों को अन्तर्मुखी करके यानी अहम् (मैं) को सूक्ष्म अहम् (अस्मिता मैं कर्ता हूँ, मैं भोक्ता हूँ) मैं लय करके तथा सूक्ष्म अहम् को भी अस्मि (हूँ) में लय करके जीव ब्राह्मी स्थिति में पहुँच जाता है।
- ' ' वे कहा करते थे ‘‘ मनुष्य परमात्मा का ज्येष्ठ पुत्र है, उसको परमात्मा ने विचार, वाणि, ज्ञान, बुद्धि, संकल्प सुनने, देखने बातचीत करने के ऐसे सर्वांगपूर्ण साधन दिए, जिनका समुचित सदुपयोग करके मनुष्य अपने आप ब्राह्मी स्थिति तक पहुँच सकता है।
- संसार में स्थित होने के स्थान में ब्रह्म में स्थित हो जाना ही ब्राह्मी स्थिति है / अगर अंत काल में भी किसी को यह स्थिति प्राप्त हो जाये तो वह ब्रह्म निर्माण को प्राप्त होता है / ब्रह्म में लीं होना ही, महान निर्वाण को प्राप्त करना है.
- सत्त्व-रज की अधिकता धर्म को जन्म देती है, तम-रज की अधिकता होने पर आसुरी वृत्तियाँ प्रबल होती और धर्म की स्थापना अर्थात गुणों के स्वभाव को स्थापित करने के लिए, सतोगुण की वृद्धि के लिए, अविनाशी ब्राह्मी स्थिति को प्राप्त आत्मा अपने संकल्प से देह धारण कर अवतार गृहण करती है।
- सत्त्व-रज की अधिकता धर्म को जन्म देती है, तम-रज की अधिकता होने पर आसुरी वृत्तियाँ प्रबल होती और धर्म की स्थापना अर्थात गुणों के स्वभाव को स्थापित करने के लिए, सतोगुण की वृद्धि के लिए, अविनाशी ब्राह्मी स्थिति को प्राप्त आत्मा अपने संकल्प से देह धारण कर अवतार गृहण करती है।
- इसका शब्दार्थ करके देखें-काम-क्रोध आदि विकारों से मुक्त (कामक्रोधवियुक्तानां), संयत चित्त वाले (यतचेतसाम्) आत्मज्ञ (विदितात्मनाम्), यतिगणों को (यतीनां) शरीर छोड़ने से पहले एवं बाद में (अभितः) ब्राह्मी स्थिति की अवस्था में निर्वाण की (ब्रह्मनिर्वाणं) प्राप्ति होती है (वर्तते) ।
- बापूजी चाहते है की हम सब जल्द से जल्द आत्म साक्षात्कार करके ब्राह्मी स्थिति में टिक जायें और सभी दुखों से सदा के लिए मुक्त हो जायें, बाकी सभ उपाय Temporary है एक यही Permanent Solution है सभी दुखो से मुक्त होने का | [“ हे सुमुखी, आत्मा मेंगुरुबुधि के सिवाय अन्य कुछ भी सत्य नहीं है, इसलिए इस आत्मज्ञान को प्राप्त करने के लिए बुधीमानो को प्रयत्न करना चाहिए ” (गुरुगीता श्. २२)]
- आत्म क्षात्कार / ब्राह्मी स्थिति (आत्म ज्ञान होने के बाद की स्थिति) | गुरुगीता में शिव पार्वती सवांद से, शिवजी ने पार्वतीजी से कहा ” हे प्रिये, वेद, शास्त्र, पुराण, इतिहास आदि, मंत्र, यन्त्र, मोहन, उच्चाटन आदि विद्या, शैव, शाक्त, आगम और अन्य सर्व मतमतांतर, ये सब बातें गुरुतत्व को जाने बिना भ्रांत चित्वाले जीवों को पथभ्रष्ट करने वाली है और जप, तप, व्रत, तीर्थ, यज्ञ, दान, ये सब व्यर्थ हो जाते हैं (गुरुगीता श्लोक न.