मुहब्बत के सिवा वाक्य
उच्चारण: [ muhebbet k sivaa ]
उदाहरण वाक्य
- मैं तुम पे मरता हूँ / मरती हूँ लेकिन तुम्हारे लिए मरूँगा / मरूँगी नहीं क्योंकि “ और भी गम हैं ज़माने में मुहब्बत के सिवा ” और खासतौर से तुम्हारी मुहब्बत के सिवा.
- भारत (और विशेषकर उर्दू, और कुच हद तक उसके संसर्ग से ग्रसित हिन्दी) को यह बात समझना बहुत जरूरी है कि ' और भी गम हैं जमाने में मुहब्बत के सिवा.. ”
- ऐसा लगता है कि फ़ैज़ अहमद ' फ़ैज़ ' की मशहूरे-ज़माना काव्य पँक्ति-' और भी ग़म हैं ज़माने में मुहब्बत के सिवा '-ने ' द्विज ' की काव्य यात्रा का मार्ग प्रशस्त किया है।
- तू जो मिल जाए तो तक़दीर निगूँ हो जाए यूँ न था, मैंने फ़क़त चाहा था यूँ हो जाए और भी दुख हैं ज़माने में मुहब्बत के सिवा राहतें और भी हैं, वस्ल की राहत के सिवा
- ' अपना गम भूल गए, उनकी जफा भूल गए, हम तो हर बात मुहब्बत के सिवा भूल गए...' उसमें दूसरी गजल थी-‘साकिया होश कहाँ था तेरे दीवाने में...।' साठ के दशक में ही चित्राजी के साथ आपकी मुलाकात हुई थी और फिर शादी भी हुई थी।
- “ नेकों को न ठहराइओ बद ऐ फ़र्ज़न्द इक आध अदा उनकी गर हो न पसंद कुछ नुक्स अनार की लताफत में नहीं हों अगर उसमें गले सड़े दाने चंद ” और फिर “ जहाँ में और भी ग़म हैं मुहब्बत के सिवा. ”
- बता दे सिर्फइतना मेरे सथियाक्या मांगा था तुझसेएक मुहब्बत के सिवा? तुमसे मुझे तेरा प्यारन मिले पर नफरत तोजी भर के मिलीअब कैसे समझाऊँ तुझे?अपने इस कमबख्त दिल कोअपनी दास्तानें वफारब ही जानता है!!कैसे तेरे बगैर जीते है हमउफ़ ये कैसी सज़ा दे दी तुमने?कि अब खामोश रहकर भी तेरी...
- वो कहते हैं न और भी गम हैं दुनिया में इक मुहब्बत के सिवा-तो हुआ यह कि मेरे पिछले श्रृंगार विषयक पोस्ट पर जन सहमति (याँ) अपेक्षा के अनुरूप नहीं मिलीं मगर पांच पंचों का अनुमोदन तो मिल ही गया है जो मुझे आगे बढ़ने को प्रेरित कर रहा है!
- नजरिए में आया हुआ बदलाव शायरी में कुछ यूं ढलता है-पीप बहती हुई गलते हुए नासूरों से / लौट आती है इधर को भी नजर क्या कीजे / अब भी दिलकश है तेरा हुस्न मगर क्या कीजे / और भी गम है जमाने में मुहब्बत के सिवा / मुझसे पहली सी मुहब्बत मेरी महबूब न मांग।
- तू जो मिल जाये तो तकदीर निगूं हो जाये यूँ न था, मैने फकत चाहा था यूँ हो जाये और भी दुःख है जमाने में मुहब्बत के सिवा राहतें और भी हैं वस्ल कि राहत के सिवा अनगिनत सदियों के तारिक बहीमाना तिलिस्म रेशमो-अतलसो-कम ख्वाब में बुनवाये हुए जा-ब-जा बिकते कूचा-ओ-बाज़ार में जिस्म खाक में लिथड़े हुए खून में नहलाये हुए