रामचन्द्र वीर वाक्य
उच्चारण: [ raamechender vir ]
उदाहरण वाक्य
- उन्होंने अपने पिता श्रीमंमाहत्मा रामचन्द्र वीर महाराज के समान उन्होंने भी अपना सम्पूर्ण जीवन भारतमाता और उसकी संतानों की सेवा में, अनशनो सत्याग्रहो, जेल्यात्राओं, आंदोलनों एवं प्रवासों में संघर्षरत रहकर समर्पित किया है.
- इसी तथ्य के आधार पर महात्मा रामचन्द्र वीर ने हनुमान जी की जाति वानर बतायी है और इसी आधार पर राजस्थान के विराटनगर मे नर स्वरुप मे हनुमान जी की मुर्ति वज्रांग मन्दिर मे स्थापित की है।
- इसी तथ्य के आधार पर महात्मा रामचन्द्र वीर ने हनुमान जी की जाति वानर बतायी है और इसी आधार पर राजस्थान के विराटनगर मे नर स्वरुप मे हनुमान जी की मुर्ति वज्रांग मन्दिर मे स्थापित की है।
- सन् 1966-67 के विराट-गोरक्षा आन्दोलन के दौरान महात्मा रामचन्द्र वीर महाराज ने गोरक्षा कानून बनाये जाने की मांग को लेकर 166 दिन का अनशन करके पूरे संसार का ध्यान आकर्षित करने में सफलता प्राप्त की थी।
- पत्नी अल्पकालीन सामीप्य के पश्चात् पिता के घर लौटी एवं वहीँ उन्होंने अमर हुतात्मा गोपालदास जी के १ २ वे वंशधर तथा परम तेजश्वी संत, महात्मा रामचन्द्र वीर के एकमात्र आत्मज आचार्य धर्मेन्द्र को जन्म दिया.
- (सन १ ९ ० ९) को गोमाता की रक्षा के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले झुझारू धर्माचार्य महात्मा रामचन्द्र वीर का जन्म श्रीमद स्वामी भूरामल जी व श्रीमती विरधी देवी के घर पुरातन तीर्थ विराटनगर (राजस्थान) में हुआ।
- श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी तथा पुरी के जगद्गुरु शंकराचार्य श्री स्वामी निरंजनदेव तीर्थ तथा महात्मा रामचन्द्र वीर के आमरण अनशन ने आन्दोलन में प्राण फूंक दिये थे किन्तु जनसंघ इसका प्रारम्भ से अपने राजनैतिक लाभ के लिये एक हथियार के रूप में प्रयोग कर रहा था ।
- श्री संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी तथा पुरी के जगद्गुरु शंकराचार्य श्री स्वामी निरंजनदेव तीर्थ तथा महात्मा रामचन्द्र वीर के आमरण अनशन ने आन्दोलन में प्राण फूंक दिये थे किन्तु जनसंघ इसका प्रारम्भ से अपने राजनैतिक लाभ के लिये एक हथियार के रूप में प्रयोग कर रहा था ।
- श्री संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी तथा पुरी के जगद् गुरु शंकराचार्य श्री स्वामी निरंजनदेव तीर्थ तथा महात्मा रामचन्द्र वीर के आमरण अनशन ने आन्दोलन में प्राण फूंक दिये थे किन्तु जनसंघ इसका प्रारम्भ से अपने राजनैतिक लाभ के लिये एक हथियार के रूप में प्रयोग कर रहा था ।
- जहाँ मध्यकाल में वाल्मीकि रामायण से प्ररेणा लेकर गोस्वामी तुलसीदास जी ने जन सामान्य के लिए अवधी भाषा में रामचरित मानस की रचना की, वहीं आधुनिक काल में वाल्मीकि रामायण से ही प्रेरित होकर महात्मा रामचन्द्र वीर ने हिन्दी भाषा में श्री रामकथामृत लिखकर एक नया अध्याय जोडा है।