राव मालदेव वाक्य
उच्चारण: [ raav maaledev ]
उदाहरण वाक्य
- किन्तु सम्वत् 1695 में राव मालदेव द्वारा मेडता विजय के बाद वे पुन: लौकिक पतिगृह जाने के स्थान पर अपने पारलौकिक पति गिरधर नागर की क्रीडास्थली वृन्दावन प्रस्थान कर गईं ।
- ” आमेर शास्त्र भण्डार में संग्रहित ” वरांगरचित ” की वि. सं. १ ५ ९ ५ की प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि उस समय टोंक के आसपास तक राव मालदेव का राज्य था।
- विवाहोपरान्त मधु-यामिनी के अवसर पर राव मालदेव को उमा दे रंगमहल में पधारने का अर्ज करने हेतु गई दासी भारमली के अप्रतिम सौंदर्य पर मुग्ध होकर मदमस्त राव जी रंगमहल में जाना बिसरा भारमली के यौवन में ही रम गये।
- राव मालदेव के भारमली में रत होकर रानी उमा दे के साथ हुए विश्वासघात से रुष्ट उसके पीहर वालों ने अपनी राजकुमारी का वैवाहिक जीवन निर्द्वन्द्व बनाने हेतु अपने योद्वा ‘ गनायत ' बाघजी को भारमली का अपहरण करने के लिए उकसाया।
- देवीदास के पुत्र लक्ष्मीदास 12 मार्च 1542 को जोधपुर के राव मालदेव के बीच युद्ध में काम आये बड़े पुत्र किशनदास को उनकी वीरता के लिए थोरी खेड़ा गांव पटटे में मिला जिनके पोते मनोहर दास ने इस गांव का नाम किसनासर रखा।
- राव मालदेव ने गिरी सुमेल के युद्व के बाद शेरशाह की सेना द्वारा पीछा किये जाने पर सिवाना किले में आश्रय लिया था तद्नन्तर उनके यशस्वी पुत्र चन्द्रसेन ने सिवाना के किले को केन्द्र बनाकर शक्तिशाली मुगल बादशाह अकबर की सेनाओं का लम्बे अरसे तक प्रतिरोध किया।
- जब राव मालदेव जी ने सिंधलो को जेतारण में से निकाल दिया था तो उनको राणाजी ने अपने पास रख कंवला वगैरा 18 गांव गोड़वाड़ में दिये थे जिनमें से उन्होने 5-6 गांव न पिरोयतो को भी दिये जिनकी जमा 10 हजार से 15 हजार थी।
- जगमाल के चले जाने के बाद राव मालदेव ने इन सब को एक ही प्रशासन के अन्तर्गत कर दियाराव मालदेव के पहले खेड चार लोगों में बांटा हुआ था, जिस समय राव शेरशाह सूरी के झगडे में उलझे हुए थे तब ये चारों क्षेत्र फिर से स्वतंत्र हो गये थे।
- आपने जोधपुर की रूठी रानी के बारे में पढ़ते हुए उसकी दासी भारमली का नाम भी पढ़ा होगा | जैसलमेर की राजकुमारी उमादे जो इतिहास में रूठी रानी के नाम से प्रसिद्ध है अपनी इसी रूपवती दासी भारमली के चलते ही अपने पति जोधपुर के शक्तिशाली शासक राव मालदेव से रूठ गई थी और मालदेव के ला...
- |जोधपुर के राजा मालदेव अपने समय के सक्तिशाली शासक थे व मेड़ता के राव विरमदेव भी उस ज़माने के अद्वितीय योधा माने जाते थे विरमदेव का मेड़ता व अजमेर पर स्वतंत्र शासन था और राव मालदेव को विरमदेव की कीर्ति व स्वतंत्रता से बड़ा द्वेष था अतः अपने पराक्रमी सेनापति जेता जी व कुम्पा जी को विशाल सेना के साथ मेड़ता भेजा | विरमदेव से मेड़ता व अजमेर छीन लेने के बाद राव मालदेव ने डीडवाना भी छीन लिया