लार्ड इरविन वाक्य
उच्चारण: [ laared irevin ]
उदाहरण वाक्य
- जिस साल भारतीय आजादी के तीन सपूतों राजगुरू, सुखदेव और भगत सिंह को फांसी दी गयी उसी साल १९३१ में इन शहीदों के हत्यारे लार्ड इरविन ने इण्डिया गेट को राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा दे दिया था.
- जिस साल भारतीय आजादी के तीन सपूतों राजगुरू, सुखदेव और भगत सिंह को फांसी दी गयी उसी साल १९३१ में इन शहीदों के हत्यारे लार्ड इरविन ने इण्डिया गेट को राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा दे दिया था....
- भगतसिंह ने कहा था कि हम लार्ड इरविन की जगह पर पुरुषोत्तम दास टण्डन या तेज प्रकाश सप्रू को नहीं लाना चाहते, बल्कि मेहनतकशों का शासन चाहते हैं जिसमें सत्ता की सम्पूर्ण बागडोर मेहनतकशों के हाथों में हो।
- जबकि गांधी जी लार्ड इरविन की बग्घी पर क्रांतिकारियों की ओर से फेंके गए बम के बाद इस घटना के बिल्कुल उल्टी बात कह रहे थे: ‘ उस विशाल आवाम को हिंसा की भावना छू तक नहीं पाई है।
- उत्तर:-जे एच ह्विटले (लार्ड इरविन के समय यह आयेग श्रमिकों की स्थिति का अध्ययन कर रिपोर्ट प्रस्तुत करने के उद्देशय से बनाया गया था) 52-हैरी पॉर्टर एण्ड द हाफ ब्लड प्रिंस पुस्तक के लेखक है।
- जिस साल भारतीय आजादी के तीन सपूतों राजगुरू, सुखदेव और भगत सिंह को फांसी दी गयी उसी साल १ ९ ३ १ में इन शहीदों के हत्यारे लार्ड इरविन ने इण्डिया गेट को राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा दे दिया था.
- 23 जुलाई 1927-इंग्लैण्ड के राजा के साथ अभिवादन का आदान-प्रदान कर ब्रिटेन और भारत के बीच इम्पेरियल वायरलेस चेन बीम द्वारा खड़की और दौंड स्टेशनों के जरिये रेडियो टेलीग्राफ प्रणाली शुरू की गयी, जिसका उद्घाटन लार्ड इरविन ने किया.
- उसी वर्ष दिसम्बर महीनें में, जब गांधी जी कलकत्ता कांग्रेस के प्रस्ताव के अनुसार भारतवर्ष के लिए पूर्ण औपनिवेशिक स्वराज्य की मांग को लार्ड इरविन से स्वीकार कराने में सफल न हुए, तो राष्ट्रीय आजादी की ओर एक लम्बी उड़ान मारने के लिए क्षेत्र तैयार हो गया।
- तत्कालीन वायसराय लार्ड इरविन ने उस घटना का तात्पर्य अच्छी तरह समझा और बम विस्फोट के बाद ही व्यवस्थापिका सभाओं के संयुक्त अधिवेशन में भाषण के समय चर्चा करते हुए बताया कि बमों का यह प्रकार किसी एक व्यक्ति पर नहीं बल्कि एक संस्था (अंग्रेजी शासन) पर किया गया है।
- गांधीजी ने भगतसिँह व उसके साथियोँ की फाँसी माफ कराने के लिए लार्ड इरविन से वार्ता तो की लेकिन कोई दृढ इच्छा शक्ति प्रकट न की जिसके कारण राजगुरू, सुखदेव व भगतसिँह को नियम भंग कर 24 मार्च 1931 को प्रातःकाल दी जाने वाली फाँसी 23 मार्च को शाम मेँ ही दे दी गई ।