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शान्तिपर्व वाक्य

उच्चारण: [ shaanetiperv ]

उदाहरण वाक्य

  1. ' महाभारत ' शान्तिपर्व * के नारायणीय उपाख्यान में इस नवीन धर्म को वैष्णव यज्ञ कहा गया है और यज्ञ प्रधान वैदिक कर्मकाण्ड के प्रवृत्ति-मार्ग के विपरीत इसे निवृत्ति-मार्ग बताया गया है।
  2. महाभारत के शान्तिपर्व में मोक्षपर्व के 342 वें अध्याय के दो श्लोकों में यास्क का उल्लेख है और कहा गया है कि उन्होंने पाताललोक में नष्ट हुए निरुक्तशास्त्र को पुनः प्राप्त किया।
  3. महाभारत के शान्तिपर्व में मोक्षपर्व के 342 वें अध्याय के दो श्लोकों में यास्क का उल्लेख है और कहा गया है कि उन्होंने पाताललोक में नष्ट हुए निरुक्तशास्त्र को पुनः प्राप्त किया।
  4. महाभारत के शान्तिपर्व में भी जहाँ पर पूर्वोक्त परशुरामजी का आख्यान हैं वहीं 49 वें अध्याय में सहार्जुन के यज्ञ में भी ब्राह्मणों को पृथ्वी राज्य की प्राप्ति इस प्रकार लिखी हैं कि:
  5. ' नि: संदेह परमेश्वर ने ही परावाक (वेदवाणी) का निर्माण किया है-ऐसा [[महाभारत]] में स्पष्ट कहा गया है-' अनादिनिधना विद्या वागुत्सृष्टा स्वयम्भुवा॥ ' balloon title = ” महाभारत, शान्तिपर्व (232 ।
  6. नतीजा यह हुआ है कि जहां महाभारत में रामोपाख्यान, नलोपाख्यान, शकुन्तलोपाख्यान जैसी कथाएं उसके इतिहास चरित्र को निखारती हैं तो वहां शान्तिपर्व, अनुशासनपूर्व जैसे अंशों से इस प्रबन्धकाव्य का धर्मशास्त्र चरित्र उभर कर सामने आ गया है।
  7. इसी प्रकार शान्तिपर्व [129] एवं विष्णुधर्मोत्तर॰ [130] में आया है कि श्राद्धप्रथा का संस्थापन विष्णु के वराह अवतार के समय हुआ और विष्णु को पिता, पितामह और प्रपितामह को दिये गये तीन पिण्डों में अवस्थित मानना चाहिए।
  8. शान्तिपर्व [7] ने बताया है कि किस प्रकार ब्रह्मा ने धर्म, अर्थ एवं काम पर एक लाख अध्याय लिखे और वह महाग्रन्थ कालान्तर में विशालाक्ष, इन्द्र, बाहुदन्तक, बृहस्पति एवं काव्य (उशना) द्वारा क्रम से 10,000, 5,000, 3,000 एवं 1,000 अध्यायों में संक्षिप्त किया गया।
  9. इसके बाद जब कौरव-पाण्डवों को युद्ध विद्या में कुशल करके पुराना बदला चुकाने के लिए उन्हें द्रुपद को पकड़ने को भेजा हैं और अर्जुन उसे परास्त करके पकड़ लाये हैं, तब द्रोणाचार्य ने शान्तिपर्व के 140 वें अध्याय में कहा हैं कि:
  10. शान्तिपर्व [6] में आया है कि किस प्रकार भगवान् ब्रह्मा ने एक सौ सहस्त्र श्लोकों में धर्म पर लिखा, किस प्रकार मनु ने उन धर्मों को उद्घोषित किया और किस प्रकार उशना तथा बृहस्पति ने मनु स्वायंभुव के ग्रन्थ के आधार पर शास्त्रों का प्रणयन किया।
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