संथाल विद्रोह वाक्य
उच्चारण: [ senthaal videroh ]
उदाहरण वाक्य
- संथाल विद्रोह, मुंडा विद्रोह, १८५७ का महाविद्रोह, सन्यासी विद्रोह, कोल विद्रोह, चुआड़ विद्रोह, भील विद्रोह, तीतूमीर विद्रोह, कोरेगांव विद्रोह-सर्वत्र गैर आदिवासी पर वर्णव्यवस्था आधारित ब्राह्मण शासित समाज में छह हजार जातियों में बंटे गुलाम मूलनिवासी जनजातियों के साथ कभी खड़े नहीं हुए।
- रांची: वैसे तो स्वाधीनता संग्राम की पहली लड़ाई 1857 में मानी जाती है, मगर इसके पहले ही वर्तमान के झारखंड राज्य के संथाल परगना में ' संथाल हूल ' और ' संथाल विद्रोह ' के द्वारा अंग्रेजों को भारी क्षति उठानी पड़ी थी।
- उसकी अपनी आर्थिक बुनियाद उतनी मजबूत न होने और इसी वजह चेतना के स्तर पर भी पिछड़े हुए होने के कारण ही संथाल विद्रोह, सिपाही विद्रोह, नील विद्रोह की तरह के जन-विद्रोहों को किसी प्रकार का नेतृत्व देने में वह वर्ग पूरी तरह से विफल रहा था।
- उस दौरान, 1793 में तिलका मांझी का संथाल विद्रोह, 1798 में भूमिज विद्रोह, 1810 में चेरो विद्रोह, 1819 में मुंडा विद्रोह, 1834 में चांदभैरव और बुद्धू भगत का सिपाही विद्रोह, 1875 में सरदार आंदोलन एवं 1895 और 1914 में जतरा भगत का टाना भगत आंदोलन चलता रहा।
- 1857 से लेकर 1947 तक का काल कई जन विद्रोहों का काल रहा था जिसमे जनता ने खुद ही शोषणकारी शक्तियों के खिलाफ मोर्चा खोला जिसमे बिरसा मुंडा का विद्रोह, संथाल विद्रोह और तेलंगाना और तेभागा का किसान आन्दोलन प्रमुख रहे है, ज्ञात रहे की ये विद्रोह हर तरह के देशी और विदेशी शोषण के खिलाफ हुए थे.
- मतुआ आंदोलन, नील विद्रोह, सन्यासी विद्रोह, मुंडा संथाल विद्रोह, चुआड़ विद्रोह ने, चंडाल आंदोलन और तेभागा आंदोलन ने बंगाल की किसान जातियों को जैसे एकजुट किया और हाशिये पर रहे वर्चस्ववाद की वापसी भारत विभाजन से सुनिश्चित हुई, वहीं करिश्मा पंजाब की हिंदू, सिख और पंजाबी एकता को तहस नहस करने के लिए अस्सी और नब्वे के दशक में दोहराया गया।
- चूँकि बंगाल मे स्थापित औपनिवेशिक राजस्व प्रणाली पर काफ़ी चर्चा हो चुकी है इसलिये [...] आधुनिक-भारत 1855-56 अभिलेखों उन्नीसवीं शताब्दी औपनिवेशिक राजस्व प्रणाली औपनिवेशिक शासन कपास कलेक्टर ऑगस्टस क्लीवलैंड कुदाल कॄषि का विस्तार खेती गंजुरिया पहाड़ चलाकर चावल जंगलों का सफ़ाया जमीन झूम कॄषि दामिन-इ-कोह दिकू पहाड़िया जीवन का प्रतीक बीरभूम बुकानन बुकानन ने ब्रिटिश लोगो की घुसपैठ भागलपुर राजमहल की पहाड़ियों राजस्व संथाल परगने का निर्माण संथाल विद्रोह स्थायी किसान हल
- अभिजीत जी, अगर गाँधी, सुभाष … भगत नहीं होते तो स्वतंत्रता नहीं मिलती यह अवधारणा ही गलत है … भारत की स्वतंत्रता अपरिहार्य थी क्योंकि स्वतंत्रता अपने पुत्रों को समय आने पर जन्म दे देती है … अगर यह विद्रोह सफल भी होता तो भारत का एक होना भी अपरिहार्य था … संथाल विद्रोह, संन्यासी विद्रोह इसी का पूर्व सूचक थीं … लेकिन आपके विचार भी उत्तम हैं … आने का शुक्रिया!!