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समन्तभद्र वाक्य

उच्चारण: [ semnetbhedr ]

उदाहरण वाक्य

  1. अकलंक ने उमास्वाति के ' तत्वार्थसूत्र ' तथा समन्तभद्र की ' आप्तमीमांसा ' पर क्रमश: ' तत्वर्थराजवार्तिक ' तथा ' अष्टशती ' नामक टीका लिखी है।
  2. जैन न्याय में प्रमाण को परिभाषित करते हुए सर्वप्रथम समन्तभद्र ने कहा है कि यह ज्ञान प्रमाण हो सकता है, जो स्व और पर का अवभासक हो।
  3. इसी समय जैन परम्परा में दक्षिण भारत में महामनीषी समन्तभद्र का उदय हुआ, जो उनकी उपलब्ध कृतियों से प्रतिभाशाली और तेजस्वी पांडित्य से युक्त प्रतीत होते हैं।
  4. इस तरह समन्तभद्र ने भाव और अभाव के पक्षों में होनेवाले आग्रह को समाप्त कर दोनों को सम्यक बतलाया तथा उन्हें वस्तु के अपने वास्तविक धर्म निरूपित किया।
  5. परन्तु समन्तभद्र के काल में उसकी आवश्यकता बढ़ गई, क्योंकि ई॰ 2 री, 3 री शताब्दी का समय भारतवर्ष के दार्शनिक इतिहास में अपूर्व क्रांति का था।
  6. आगे यहाँ भी भाव और अभाव की तरह अद्वैत और द्वैत में तीसरे आदि 5 भंगों की और योजना करके सप्तभंगनय से वस्तु को समन्तभद्र ने अनेकान्त सिद्ध किया है।
  7. इसी से समन्तभद्र ने इन प्रचलित वादों का स्पष्ट और कुछ विस्तार से कथन करते हुए उन वादों में दोष प्रदर्शित किये तथा उन सभी को स्याद्वाद द्वारा स्वीकार किया।
  8. समन्तभद्र के इस कार्य को उनके उत्तरवर्ती श्रीदत्त, पूज्यपाद देवनन्दि, सिद्धसेन, मल्लवादी, सुमति, पात्रस्वामी आदि दार्शनिकों एवं तार्किकों ने अपनी महत्वपूर्ण रचनाओं द्वारा अग्रसारित किया।
  9. आचार्य समन्तभद्र, अकलंक, यशोविजय के सिवाय सिद्धसेन *, विद्यानंद * और हरिभद्र जैसे दार्शनिकों एवं तार्किकों ने भी स्याद्वाददर्शन और स्याद्वाद नयाय को जैन दर्शन और जैन न्याय प्रतिपादित किया है।
  10. समन्तभद्र की ' आप्त-मीमांसा ', जिसे ' स्याद्वाद-मीमांसा ' कहा जा सकता है, ऐसी कृति है, जिसमें एक साथ स्याद्वाद, अनेकान्त और सप्तभंगी तीनों का विशद और विस्तृत विवेचन किया गया है।
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