सूत की माला वाक्य
उच्चारण: [ sut ki maalaa ]
उदाहरण वाक्य
- इसके अतिरिक्त मधुबाला, मधुकलश, निशा निमंत्रण, खादि के फूल, सूत की माला, मिलन यामिनी, बुद्ध और नाच घर, चार खेमे चौंसठ खूंटे, दो चट्टानें जैसी काव्य की रचना बच्चन ने की है.
- हरिवंश राय बच्चन के संपूर्ण साहित्य की सूची कविता संग्रहतेरा हार (1932) मधुशाला (1935) मधुबाला (1936) मधुकलश (1937) निशा निमंत्रण (1938) एकांत संगीत (1939) आकुल अंतर (1943) सतरंगिनी (1945) हलाहल (1946) बंगाल का काव्य (1946) खादी के फूल (1948) सूत की माला (1948)
- पहनाई गई माला से जूते साफ किए जयराम नेराजस्थान के बीकानेर में केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश द्वारा सूत की माला से अप...अन्य राजनीती ख़बरे...बालकृष्ण ने मांगे 20 दिन, सीबीआईदेहरादून. सीबीआई को आज योग गुरु बाबा रअन्ना, बाबा से निपटेंगे राहुल! नई दिल्ली।
- तंग पेन्ट पहने और बनियान पहने हुए, लम्बे बाल वाले एक व्यक़्ति ने कहा उसमे कच्चे सूत की माला बनाकर दोंनो हथेलियों मे लेकर बार-बार अपने मूंह से सिद्ध किए मंत्रो का उच्चारण करके नीचे बैठे हुए आदमी के सिर के नीचे डाल दिया।
- हमारे देश के सम्मानिये नेता सम्मान का केसे अपमान करते है इसका एक जीवंत उदहारण राजस्थान के बीकानेर में देखने को मिला जन्हा केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने श्रीकोलायत में सोमवार को आयोजित जनसभा में मंच पर ही गांधी दर्शन की प्रतीक सूत की माला से अपने जूते पोंछ लिए।
- सामाजिक-राजनैतिक कविताओं (बंगाल का काल, खादी के फूल, सूत की माला, धार के इधर-उधर, आरती और अंगारे, बुद्ध और नाचघर, त्रिभंगिमा, चार खेमे चौंसठ खूँटे, दो चट्टानें, जाल समेटा) तक आते-आते बच्चन का यह काव्य-नायक मनुष्य अपने व्यक्तित्व के रूपांतरण और समाजीकरण में सफल हो जाता है ;
- इससे पहले कार्यक्रम स्थल पर पहुंचने पर प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी का सूत की माला पहनाकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, नगरीय विकास मंत्री शांति धारीवाल, पूर्व मंत्री डॉ. चन्द्रभान, सांसद डॉ. महेश जोशी, जयपुर की मेयर ज्योति खण्डेलवाल तथा अतिरिक्त मुख्य सचिव नगरीय विकास जी. एस. संधु ने स्वागत किया।
- निशा-निमंत्रण ', ‘ प्रणय पत्रिका ', ‘ मधुकलश ', ‘ एकांत संगीत ', ‘ सतरंगिनी ', ‘ मिलन यामिनी ', ” बुद्ध और नाचघर ', ‘ त्रिभंगिमा ', ‘ आरती और अंगारे ', ‘ जाल समेटा ', ‘ आकुल अंतर ' तथा ‘ सूत की माला ' नामक संग्रहों में आपकी रचनाएँ संकलित हैं।
- तेरा हार (1932) मधुशाला (1935) मधुबाला (1936) मधुकलश (1937) निशा निमंत्रण (1938) एकांत संगीत (1939) आकुल अंतर (1943) सतरंगिनी (1945) हलाहल (1946) बंगाल का काव्य (1946) खादी के फूल (1948) सूत की माला (1948) मिलन यामिनी (1950) प्रणय पत्रिका (1955) धार के इधर उधर (1957) आरती और अंगारे (1958) बुद्ध और नाचघर (1958) त्रिभंगिमा (1961) चार खेमे चौंसठ खूंटे (1962) दो चट्टानें (1965) बहुत दिन बीते (1967)
- बाग़ है ये, हर तरह की वायु का इसमें गमन है, एक मलयज की वधू तो एक आँधी की बहन है, यह नहीं मुमकिन कि मधुऋतु देख तू पतझर न देखे, कीमती कितनी कि चादर हो पड़ी सब पर शिकन है, दो बरन के सूत की माला प्रकृति है, किन्तु फिर भी-एक कोना है जहाँ श्रृंगार सबका है बराबर!