१८३७ वाक्य
उच्चारण: [ 1837 ]
उदाहरण वाक्य
- तख्त साहिब की इमारत का निर्माण कार्य सबसे पहले महाराजा रणजीत सिंघ जी ने शुरु करवाया था जो १८३२ ई. से १८३७ ई. तक चलता रहा।
- डा० रोजेरी ने उसी को ए डिक्शनरी आव ' इंग्लिश बँगला ऐंड हिंदुस्तानी' नाम से संक्षिप्ततर रूप में कलकत्ता से १८३७ ई० में प्रकाशित कराया था ।
- उपरोक्त अन्तर के आधार पर १८३७ ईसा पूर्व के अनुसार विक्रमी संवत, सप्तर्षि संवत, कलियुग संवत और प्राचीन सप्तर्षि आदि में वर्ष आदि निकाले जा सकते है।
- १९ जून, १८३७ को उन्होंने मत्यूशा नामक शिकारी, जो उनका नौकर भी था, के साथ तूला के लिए प्रस्थान किया और २४ द्घंटों से भी कम समय में लंबी यात्राा तय कर २१ जून को वह वहाँ पहुँचे।
- १८३७ में चांदी की तादाद बढ़ा कर ९०% और ताम्बे की घटा कर १०% कर दी गयी और डाइम का आकार और भी छोटा कर दिया गया (उसका व्यास १८.८ मिलीमीटर से घटाकर १७.९ मिलीमीटर कर दिया गया जो आज भी क़ायम है)।
- [3] १८३७ में चांदी की तादाद बढ़ा कर ९०% और ताम्बे की घटा कर १०% कर दी गयी और डाइम का आकार और भी छोटा कर दिया गया (उसका व्यास १८.८ मिलीमीटर से घटाकर १७.९ मिलीमीटर कर दिया गया जो आज भी क़ायम है)।
- अलेक्ज़ेंडर बर्न ने ही पुनः १८३७ में लिखा कि जब उसने उस समय के अफ़ग़ान राजा दोस्त मोहम्मद से इसके बारे में पूछा तो उसका जवाब था कि उसकी प्रजा बनी इस्राएल है इसमें संदेह नहीं लेकिन इसमें भी संदेह नहीं कि वे लोग मुसलमान हैं एवं आधुनिक यहूदियों का समर्थन नहीं करेंगे।
- नामक एक कैलकुलेटर मशीन बनाया जिसमे जोड़, घटाना, गुना तथा भाग ये सभी गणनाएं करना सम्भव हुआ|*१८२२ ईसवी में चार्ल्स बैबेज नें “डिफरेंशिअल इंजन” का आविष्कार किया तथा १८३७ ईसवी में“एनालिटिकल इंजीन ” का अविष्कार किया जो की धनाभाव के कारण पुरा न हो सका, कहा जाता है कीतभी से आधुनिक कंप्यूटर की शुरुवात हुई| ईसलिए चार्ल्स बैबेज को “कंप्यूटर का जनक ” भी कहा जाताहै|
- नामक एक कैलकुलेटर मशीन बनाया जिसमे जोड़, घटाना, गुना तथा भाग ये सभी गणनाएं करना सम्भव हुआ|*१८२२ ईसवी में चार्ल्स बैबेज नें “डिफरेंशिअल इंजन” का आविष्कार किया तथा १८३७ ईसवी में “एनालिटिकल इंजीन ” का अविष्कार किया जो की धनाभाव के कारण पुरा न हो सका, कहा जाता है की तभी से आधुनिक कंप्यूटर की शुरुवात हुई| ईसलिए चार्ल्स बैबेज को “कंप्यूटर का जनक ” भी कहा जाता है| * १९४१ ईसवी में “कोनार्ड जुसे” नें
- श्रध्धाराम जी का जन्म ब्रह्मण कुल में, ग्राम,फिल्लौर (जालंधर) १८३७ में हुआ था-पिताजी का नाम था जय दयालु जी जो ज्योतिषाचार्य थे जिन्होँने पुत्र के जन्म समय ही भविष्यवाणी की थी “ ये बालक अपनी लघु जीवनी में चमत्कारी प्रभाव वाले कार्य करेगा ” ये बात सत्य साबित हुईं “ सीखन दे राज दी विथिया ” + “ पंजाबी बातचीत ” ये श्रधा राम जी के गुरमुखी में लिखे, ग्रन्थ हैं ।.