कर्णपर्व वाक्य
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उदाहरण वाक्य
- कर्णपर्व में चेदि देश के निवासियों की प्रशंसा की गई है।
- (महाभारत) कर्णपर्व में उल्लिखित एक देश जिसे केरल के निकट स्थित माना जाता है।
- कर्णपर्व (69.57 ष् में कहा है कि अहिंसा ही धर्म है-‘ अहिंसार्थाय भूताना धर्मप्रवचनं कृतम ' ।
- कर्णपर्व के 42-43 प्रभृति अध्यायों में कर्ण और शल्य का परस्पर वाद-विवाद और हँसी-मजाक आया है और परस्पर एक-दूसरे को और उसके देशवासियों को भी नीच बनाने का यत् न किया गया है।
- ऐसे समय पर क्या बोलना चाहिए? सब धर्मों का रहस्य जानने वाले भगवान श्रीकृष्ण ऐसे ही चोरों की कहानी का दृष्टांत देकर कर्णपर्व * में अर्जुन से और आगे शांतिपर्व के सत्यानृत अध्याय * में भीष्म पितामह युधिष्ठिर से कहते हैं-
- पर, इसके बावजूद, व्यास साफ कह देते हैं कि धर्म क्या है, यह ठीक-ठीक बता पाना किसी के बस की बात नहीं है क्योंकि वह अतिसूक्ष्म है और इसलिए उसे जानना आसान नहीं-सूक्ष्मो धर्मो दुर्विदश्च (कर्णपर्व, 70.
- पर इस सबके बावजूद व्यासदेव का उसी कर्णपर्व (69.58 ष् में भरपूर आग्रह है कि धर्म के कारण ही प्रजा खुद को बचाकर रख पाती है, इसलिए धर्म वही है जो हमें बचे रहने में मदद करे-‘ धारणाद् धर्ममित्याहुः धर्मो धारयते प्रजाः।
- तभी तो महाभारत पंजाब को, जो कभी आर्य-संस्कृति का वैदिककालीन केंद्र था, दो दिन भी ठहरने लायक नहीं मानता (कर्णपर्व 43.5-8), क्योंकि यवनों के प्रभाव के कारण शुद्धाचार की दृष्टि से उस युग में यह नितांत आचारहीन बन गया था।
- परन्तु जब कर्णपर्व में वर्णित उक्त चोरों के दृष्टांत के समान, हमारे सच बोलने से निरपराधी आदमियों की जान जाने की आशंका हो तो उस समय क्या करना चाहिए? ग्रीन नामक एक अंग्रेज़ ग्रंथकार ने अपने ' नीतिशास्त्र का उपोद्घात ' नामक ग्रंथ में लिखा है कि ऐसे मौकों पर नीतिशास्त्र मूक हो जाते हैं।
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