ब्रजनिधि वाक्य
उच्चारण: [ berjenidhi ]
उदाहरण वाक्य
- ब्रजनिधि, जयपुरनरेश प्रतापसिंह (संवत् 1821-1860) का काव्यप्रयुक्त उपनाम।
- प्रतापसिंह ब्रजनिधि ने भवननिर्माण में भी विशेष रुचि दिखाई।
- ब्रजनिधि ने अपने काव्य में अपने पूर्ववर्ती एवं समकालिक कवियों के लगभग 100 पद भी संगृहीत किए हैं।
- अठाहरवीं सदी के आते-आते ब्रज भाषा के सभी मुख्य कवि-नगरीदास, आनन्दघन, ब्रजनिधि, रामनारायन, गंगादास बख्तावर-नागरी रेख़्ता में काव्य रच रहे थे।
- अन्य रचनाओं में राधा-गोविंद तथा ब्रजनिधि की भक्ति, उनका लीलाविहार, विरहव्यथा, उद्धव के प्रति गोपियों की उक्तियाँ, कुब्जा की निंदा, कवि का दैन्य एवं भक्तिसंपृक्त मनोभाव दर्शाए गए हैं।
- चंद्रमहल के कई विशाल भवन रिधसिधपोल, बड़ा दीवानखाना, गोविंद जी के पिछाड़ी का हौज, हवामहल, गोवर्धननाथ, ब्रजराजबिहारी, ठाकुर ब्रजनिधि तथा मदनमोहन जी के मंदिर आपके स्थापत्य कलाप्रेम के द्योतक हैं।
- भक्ति-रस-तरंग अथवा मन की उमंग में वे जो पद, रेखते अथवा छंद रचते थे, उन्हें उसी दिन या अगले दिन अपने इष्टदेव गोविंददेव तथा ठाकुर ब्रजनिधि महाराज को समर्पित करते थे।
- वस्तुत: कृष्ण राधा का वैभवसंपन्न रूप, नीति के पद तथा चौपड़ का खेल, स्नेह संग्राम तथा यत्र तत्र शस्त्रास्त्रों की उपमाएँ जहाँ ब्रजनिधि की राजोचित प्रवृत्तियाँ प्रदर्शित करती हैं, वहाँ कृष्ण के नटवर रूप के प्रति आकर्षण के ब्रजरज, यमुना, गोकुल, मथुरानिवास उनकी अनन्य भक्ति के परिचायक हैं।
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