• disprovable | विशेषण • contradictable • deniable • refutable • confutable • confutative • revocable |
खण्डनीय अंग्रेज़ी में
[ khandaniya ]
खण्डनीय उदाहरण वाक्यखण्डनीय मीनिंग इन हिंदी
उदाहरण वाक्य
अधिक: आगे- इसने आगे यह भी कहा दिया कि परिवादी मोहनसिंह ने इसका खण्डन करके कहा कि सम्पतराज ने उससे रिश्वत के 500 /-रू0 लिये हैं जबकि स्वयं परिवादी मोहनसिंह ने इस आशय का कोई खण्डनीय कथन नहीं किया है।
- यहां अभियोजन पक्ष की ओर से प्रस्तुत उपर्युक्त न्यायदृष्टान्तों अनुसार यह अवश्य कहा जा सकता है कि इस प्रकार के तथ्यों की यह उपधारणा खण्डनीय है लेकिन यहां अभियोजन पक्ष के विभिन्न साक्षियों की प्रतिपरीक्षा में इनके खण्डन को लेकर कोई साक्ष्य नहीं आई है और न ही स्वयं अभियुक्त ने इन परिस्थितियों के खण्डन में कोई साक्ष्य ही प्रस्तुत की है।
- जैसा कि नवोदित झारखण्ड राज्य की जनता सुखद उज्जवल स्थिति की आषा और राज्य की उन्नति तथा वैभव के प्रति उच्चाकांक्षा एवं लोक भावना से ओतप्रोत थी, कि राज्य ऐसे लोगों की नियुक्ति उन पदोें पर न करें जिनकी दागदार छवि, कंलकित या संदिग्ध सत्यनिश्ठा या खण्डनीय विष्वसनीयता हो ताकि राज्य षासकीय एवं अन्य क्षेत्रों में प्रभावी एवं भ्रश्टाचार मुक्त प्रषासन आधारित आदर्ष राज्य प्रमाणित हो ।
- इसके विपरीत विद्वान लोक अभियोजक का यह निवेदन रहा है कि पत्रावली पर उपलब्ध सम्पूर्ण साक्ष्य से अभियुक्त के विरूद्ध आरोपित आरोप साबित हुआ है अभियुक्त द्वारा लिया गया बचाव विधिसंगत नहीं है और अभियुक्त से रिश्वत की राशि बरामद होने से भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 20 के तहत अभियुक्त के विरूद्ध उपधारणा की जानी चाहिये क्योंकि अभियुक्त की ओर से इस सम्बन्ध में कोई खण्डनीय साक्ष्य पेश नहीं हुई है।
- इसके विपरीत विद्वान लोक अभियोजक का यह निवेदन रहा है कि पत्रावली पर उपलब्ध सम्पूर्ण साक्ष्य से अभियुक्तगण के विरूद्ध आरोपित आरोप साबित हुये है और अभियुक्त कालुराम द्वारा कहने पर कैलाशशंकर को 4500 /-रूपये दिये जाने एवं उसकी दुकान से रिश्वत की राशि बरामद होने से भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 20 के तहत अभियुक्तगण के विरूद्ध उपधारणा की जानी चाहिये क्योकि अभियुक्त की ओर से इस सम्बन्ध में कोई खण्डनीय साक्ष्य पेश नहीं हुई है।
- विधि की यह स्थिति स्पष्ट हैं कि अधिनियम, 1988 की धारा 20 (1) के तहत अभियुक्त के विरूद्ध अवधारणा खण्डनीय है तथा खण्डन का भार उतना गम्भीर नहीं होता जितना की अभियोजन पक्ष पर अपराध सिद्ध करने के सम्बन्ध में है, लेकिन न्यायिक विनिश्चय धनवन्तरी बनाम महाराष्ट राज्य ए. आई. आर. 1984एससी. पेज 575 में माननीय उच्चतम न्यायालय ने तय किया कि अभियुक्त पर यह भार उतना हल्का भी नही है जितना की साक्ष्य अधिनियम की धारा 114 के तहत अवधारणा के सम्बन्ध में है।
- विधि की यह स्थिति स्पष्ट हैं कि अधिनियम, 1988 की धारा 20 (1) के तहत अभियुक्त के विरूद्ध अवधारणा खण्डनीय है तथा खण्डन का भार उतना गम्भीर नहीं होता जितना की अभियोजन पक्ष पर अपराध सिद्ध करने के सम्बन्ध में है, लेकिन न्यायिक विनिश्चय धनवन्तरी बनाम महाराष्ट राज्य ए. आई. आर. 1984 एस. सी. पेज 575 में माननीय उच्चतम न्यायालय ने तय किया कि अभियुक्त पर यह भार उतना हल्का भी नही है जितना की साक्ष्य अधिनियम की धारा 114 के तहत अवधारणा के सम्बन्ध में है।
- विधि की यह स्थिति स्पष्ट हैं कि अधिनियम, 1988 की धारा 20 (1) के तहत अभियुक्त के विरूद्ध अवधारणा खण्डनीय है तथा खण्डन का भार उतना गम्भीर नहीं होता जितना की अभियोजन पक्ष पर अपराध सिद्ध करने के सम्बन्ध में है, लेकिन न्यायिक विनिश्चय धनवन्तरी बनाम महाराष्ट राज्य ए. आई. आर. 1984एस. आपराधिक प्रकरण संख्या 72-ए/2005-36-राज्य विरूद्ध खिराजराम सी. पेज 575 में माननीय उच्चतम न्यायालय ने तय किया कि अभियुक्त पर यह भार उतना हल्का भी नही है जितना की साक्ष्य अधिनियम की धारा 114 के तहत अवधारणा के सम्बन्ध में है।
- विधि की यह स्थिति स्पष्ट हैं कि अधिनियम, 1988 की धारा 20 (1) के तहत अभियुक्त के विरूद्ध अवधारणा खण्डनीय है तथा खण्डन का भार उतना गम्भीर नहीं होता जितना की अभियोजन पक्ष पर अपराध सिद्ध करने के सम्बन्ध में आपराधिक प्रकरण संख्या 39/2004 राज्य विरूद्ध शिवनारायण है, लेकिन न्यायिक विनिश्चय धनवन्तरी बनाम महाराष्ट राज्य ए. आई. आर. 1984 एससी. पेज 575 में माननीय उच्चतम न्यायालय ने तय किया कि अभियुक्त पर यह भार उतना हल्का भी नही है जितना की साक्ष्य अधिनियम की धारा 114 के तहत अवधारणा के सम्बन्ध में है।